अच्छे चलचचत्रों का समाज के उत्थान में क्या योगदान होता है?
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Ache chalchitro Ka samaj me Ek ahem Aur bda yogdaan hota hai. smaaj jis trah apne
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मुझे फ़िल्में पसंद हैं. उनके मनोरंजन पक्ष की वजह से नहीं बल्कि उनके समाज में बदलाव लाने और उसे दर्शाने की क्षमता की वजह से.
जहां भी मैं भारतीय सिनेमा के बारे में बोलता हूं, अक्सर लोग मुझसे दो सवाल पूछते हैं: क्या सिनेमा बदला है? क्या सिनेमा ने समाज में कोई बदलाव लाया है?
लोग इनका जवाब जानते हैं, फिर भी पूछते हैं. इसलिए यह लेख इन दो सवालों का जवाब देने के बारे में नहीं है, बल्कि आपका ध्यान किसी और चीज़ की ओर ले जाने के लिए है.
क्या आपको लगता है कि भारतीय सिनेमा बदला है? क्या अब यह नहीं दर्शाता कि हम क्या हैं और जीवन में क्या पाना चाहते हैं.
इन सवालों का जवाब देने के पहले हमें कुछ और सवालों का जवाब देना होगा. क्या एक समाज के रूप में हम बदले हैं.
दो फ़िल्में, दो समाज
बदलाव एक विरोधाभासी चीज़ है. इसे ख़ास संदर्भ में समझने की ज़रूरत है.
यहां संदर्भ एनिमेशन या तकनीक के इस्तेमाल, स्क्रिप्ट के प्रकार और नग्नता का स्तर नहीं है.
हम लोग जीतेंद्र-श्रीदेवी-कादर खान या गोविंदा-डेविड धवन की इतनी फ़िल्मों को पचा चुके हैं कि हम कितनी भी अजीब फ़िल्म या गाने को झेल सकते हैं.
हमें बदलाव का विश्लेषण उपभोक्ता के गहरे अर्थ के संदर्भ में करना होगा.