adarsh guru sisya sambandh pr prakash daliye
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गुरु और शिष्य के बीच में केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था, बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में कार्य करता था . उनका उद्देश्य होता था शिष्य का समग्र विकास. शिष्य को भी यह विश्वास रहता था कि गुरु उसका कभी अहित सोच भी नहीं सकते. यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है
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गुरु शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग रहा है. गु और रु.. इन दो शब्दों से मिल कर बनता है गुरु शब्द. “गु” शब्द का अर्थ है अन्धकार या अज्ञान और “रु” शब्द का अर्थ है ज्ञान या प्रकाश . अज्ञान रुपी अन्धकार को मिटाने वाला जो ज्ञान रूपी प्रकाश है, वही गुरु है.
भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊपर माना गया है.
“गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वर:
गुरुर साक्षात् परम ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः”
कबीर दास जी भी कहा है-
“गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागूँ पांय
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय”
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