adarsh mitra par nibandh
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संसार की गति-दशा और दिशा भी बड़ी विचित्र है । यहाँ कदम-कदम पर प्रलोभन छल-कपट और मकर-फुरेब तो मिल जाता है; पर सत्य या वास्तविकता के दर्शन बहुत कम और बड़ी मुश्किल से हुआ करते हैं । यहाँ मीठी- -मीठी बातें करके, सभ्यता और सुसंस्कृत होने का मुखौटा ओढ़कर, बने-संवरे स्वार्थ सिद्ध करने वाले तो हर कहीं मिल जाया करते हैं; पर निःस्वार्थ भाव से सेवा, सहायता करने वाले प्राय: नहीं मिला करते ।
मिलते भी हैं, तो बहुत कम और बहुत भाग्यशाली होने पर भी कभी-कभार ही । इसी प्रकार हर समय साथ चिपके रह कर, मित्र होने का ढोंग भरा दम भरने वाले लोग तो हर कहीं मिल जाते हैं, ताकि हमें बुद्ध बनाकर खा-पी और मौज मना सकें; पर सच्चा मित्र और साथी प्राय: दुर्लभ हुआ करता है ।
आदर्स्मा मित्र या साथी की तो आज मात्र कल्पना ही की जा सकती है ।
सच्चा मित्र या साथी अथवा आदर्श मित्र या साथी कौन एवं कैसा हुआ करता या फिर हो सकता है, इस सश्व-ध में संस्कृत के नीतिशास्त्र की एक प्रसिद्ध पँक्ति है कि ”राजहारे च श्मशाने यो तिष्ठति स : बरन्धव: ” अर्थात् राजद्वार और श्मशानघाट में जो साथ, व्यधे-से-कन्धा मिलाकर साथ खड़ा होता है वही सच्चा या आदर्श मित्र अथवा साथी हुआ करता -है । यहाँ ‘राजद्वार ‘ वास्तव में सुख-सम्पत्ति का प्रतीक है, जबकि श्मशानघाट सुख-दु ख में समय रूप से साथ देया करता है ।
केवल सुख-सम्पत्ति के दिनों में मौजमस्ती करके दु :ख-विपत्ति पडने पर आँखें सराकर मुँ ह नहीं (हेर लिया करता । संस्कृत की इस और इसी प्रकार की अन्य अनेक उक्तियों के समान आदर्श मित्र और साथी की परिभाषा बताने वाली अंग्रेजी की भी एक बड़ी ही प्रसिद्ध कहावत है- <kahavat> अर्थात् मुसीबत के समय काम आने वाला, साथ निभाने वाला व्यक्ति ही वास्तविक साथी एवं आदर्श मित्र हुआ करता है ।
इस से स्पष्ट है कि आदर्श मित्र और मित्रता को कसने वाली वास्तविक कसौटी मुसीबत या आपत्काल ही हुआ करता है । आगे-पीछे या सुख के समय अपने-आप को हमारा मित्र कहने वाले के मन में वास्तव में क्या है, इस बात का अनुमान कर पाना बड़ा ही कठिन कार्य है । वह अपने चतुराई पूर्ण अच्छे व्यवहार से अच्छा-ही-अच्छा नजर आकर हमारा शोषण करता रह सकता है ।
आज कल के वातावरण में जबकि प्रत्येक कार्य-व्यापार में मात्र निजी हानि-लाभ और निहित स्वार्थ को ही सामने रख कर कार्य किया जाता है, सादगी का स्थान व्यवहार कुशलता और चालाकी ने ले लिया है, सच्चे साथी एवं आदर्श मित्र की पहचान कर पाना और भी दुस्तर कार्य हो गया है । हिन्दी के कविवर रहीम ने भी सच्चे या आदर्श मित्र की परिभाषा उपर्युक्त प्रकार से ही करने का सार्थक प्रयास किया है ।