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भोलू हाथी के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। वह हाथियों के झुंड में रहता था, लेकिन कोई भी हाथी उसे पसंद नहीं करता था। कोई भी उस छोटे से भोलू को अपने साथ नहीं रखना चाहता था। फिर भी भोलू यथाशक्ति सबकी सेवा करता। वह सबका कहा मानता और उनके छोटे-मोटे काम भी करता।
एक बार रात के समय सदा की तरह भोलू हाथियों के झुंड में सोया हुआ था, सुबह उठकर उसने देखा तो सब हाथी जा चुके थे। वह अकेला ही रह गया था। उसने अपने साथियों को बहुत खोजा, लेकिन वे नहीं मिले। थक-हारकर भोलू अपनी किस्मत को कोसता रोता हुआ अकेला ही अनजान रास्ते पर चल दिया तभी एक महाजन ने उसको देखा तो वह बहुत खुश हुआ। वह उसको अपने घर ले गया और बड़े ही प्रेम से उसकी देखभाल करने लगा। भोलू भी महाजन की एक आवाज़ पर दौड़ा-दौड़ा आता और उसके लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहता। जब राजा को भोलू की विशेषताओं के बारे में पता चला तो, उसने उस महाजन को दरबार में बुलवाया और एक सुझाव उसके सामने रखा।
'महाजन यह सुंदर हाथी अगर तुम हमको दे दो तो हम तुम्हें मालामाल कर देंगे।' महाजन बोला, 'क्षमा कीजिए, मैंने भोलू को अपने पुत्र के समान प्यार किया है, इसलिए अब मैं इससे अलग नहीं रह सकता।' थोड़ी देर बाद सोचकर महाराज बोले, 'तो ऐसा करो कि तुम महल में ही इसके महावत बन जाओ।
तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी महल में ही कर देंगे।' 'तब ठीक है महाराज, मैं भी भोलू के साथ यहाँ पहुँच जाऊँगा।' महाजन ने संतुष्ट होते हुए कहा, 'अगले दिन शाम के समय महाजन भोलू को लेकर महल में पहुँच गया। उस दिन से महाजन भोलू के ऊपर सवारी करने लगे। तब भोलू राजा को भी प्रसन्न रखने का प्रयास करता।
एक दिन महाराज भोलू पर बैठकर शिकार करने गये। थोड़ी ही देर बाद उनको हाथियों का एक झुंड दिखाई दिया तब महाराज ने निशाना साधकर तीर चलाया।
निशाना अचूक था। तीर सीधा जाकर एक हाथी के लगा और वह हाथी ज़मीन पर गिर पड़ा, तभी भोलू ने देखा कि यह तो हाथियों का वही झुंड था, जिसने उसको छोड़ दिया था। हाथियों ने जब भोलू को देखा तो वे भी उसे पहचान गये। यह देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि उस पर एक राजा बैठा है।
उसे देखकर झुंड के सभी हाथी सोचने लगे कि वास्तव में गुणवान की कद्र सभी जगह होती है। अपनी अच्छाई और गुणों के कारण ही तो भोलू राजा के महल तक पहुँच सका था।