Social Sciences, asked by Amarjeetray, 6 months ago

अफ्रीका के संदर्भ में रंगभेद पर टिप्पणी लिखें​

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Answered by hiteshnagrota1977
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इसे ही रंगभेद नीति या आपार्थैट (Apartheid) कहते हैं। अफ्रीका की भाषा में "अपार्थीड" का शाब्दिक अर्थ है - अलगाव या पृथकता। यह नीति सन् १९९४ में समाप्त कर दी गयी। इसके विरुद्ध नेल्सन मान्डेला ने बहुत संघर्ष किया जिसके लिये उन्हें लम्बे समय तक जेल में रखा गया। .

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Answered by mjha9910
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अगर वैश्विक स्तर पर रंगभेद की बात की जाए तो दक्षिण अफ्रीका और भारत के साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव और रंगभेद के खिलाफ साझा संघर्ष रहा है और इससे ही दोनों देशों के मध्य जुड़ाव स्थापित हुआ था। स्वतंत्रता उपरांत भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति के मूल सिद्धांतों में साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लीय भेदभाव, रंगभेद, गुट-निरपेक्षता और दक्षिण-दक्षिण सहयोग जैसे विषय प्रमुख थे, जिसके फलस्वरूप प्रधानमंत्री नेहरू ने दक्षिण अफ्रीका को प्रमुखता दी। इसी के परिणामस्वरूप भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य आर्थिक और राजनैतिक संबंधों का एक नया अध्याय शुरू हुआ। नेहरू द्वारा वरीयता दिये जाने के कारण ही 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत ने जाति भेदभाव संबंधी मुद्दों को उठाया तथा दक्षिण अफ्रीका में हुए रंगभेद के विरुद्ध आंदोलन के फलस्वरूप ही भारत वह प्रथम देश बना, जिसने रंगभेद के कारण दक्षिण अफ्रीका से अपने आर्थिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक संबंधों पर प्रतिबंध लगा दिया था। संयुक्त राष्ट्र के अलावा अन्य मंचों यथा- गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा 1955 के अफ्रीका-एशिया सम्मेलन और अन्य बहुपक्षीय संगठनों के माध्यम से भारत ने रंगभेद की नीति को समाप्त करने का प्रयास किया। भारत सरकार द्वारा नई दिल्ली में अफ्रीकी नेशनल कॉन्ग्रेस का कार्यालय खोलने की दिशा में भी सहयोग किया गया एवं रंगभेद नीति के विरुद्ध किये जाने वाले प्रयासों के तहत आर्थिक सहयोग के माध्यम से सक्रिय भूमिका निभाई गई, स्वतंत्रता पश्चात् भारत द्वारा रंगभेद की नीति के विरोध के कारण दोनों देशों के आर्थिक संबंध प्रभावित हुए परंतु 1993 में नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका में बनी पहली अश्वेत सरकार के उपरांत दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार एवं वाणिज्यिक समझौते में काफी परिवर्तन आया।

रंगभेद के संबंध में चर्चा करने पर मंडेला और गांधीजी का नाम स्वयं सामने आ जाता है। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति को मिटाने वाले नेल्सन मंडेला का अपने देश में वहीं स्थान है, जो भारत में महात्मा गांधी का है। जहाँ मंडेला ने रक्तहीन क्रांति द्वारा अफ्रीकी लोगों को उनका हक दिलाया जो अहिंसात्मक था। वे समस्याओं का निराकरण बातचीत के द्वारा करते थे। वहीं महात्मा गांधी भी रंगभेद के मुखर विरोधी थे। 06 नवम्बर, 1913 को महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीतियों के खिलाफ ‘द ग्रेट मार्च’ का नेतृत्व किया था। दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी शासन के खिलाफ मंडेला की लड़ाई को भारत में अंग्रेजों के शासन के खिलाफ गांधी की लड़ाई के बराबर दर्जा प्राप्त है।

अगर वर्तमान में रंगभेद की स्थिति पर बात की जाए तो हाल ही में अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हिरासत में हत्या की घटना ने अश्वेत लोगों के खिलाफ पुलिस हिंसा को उजागर किया है, जिसके विरोध में पूरे अमेरिका में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन किये गए। प्रदर्शन के द्वारा अमेरिकी समाज को भयभीत करने वाले स्थानिक और संस्थागत नस्लवाद को खत्म करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की मृत्यु, वेस्टइंडीज के पूर्व क्रिकेटर डेरेन सैमी द्वारा भारत में खेले जाने वाले आईपीएल मैचों के दौरान नस्लीय भेदभाव किये जाने का रहस्योद्दान और उत्तर भारत में दक्षिण व उत्तर-पश्चिम भारत के लोगों के साथ किये जाने वाला व्यवहार भेदभाव का प्रत्यक्ष उदाहरण है।

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