अफ्रीका महाद्वीप में यातायात के मार्गों का कम विकास होने के क्या कारण है? इसका वहाँ के जनजीवन पर क्या प्रभाव पड़ा है?
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अफ्रीका (अंग्रेजी में ऐफ़िका) एक महाद्वीप का नाम है जो पृथ्वी के पूर्वी गोलार्ध में एशिया के दक्षिण-पश्चिम में है।
स्थिति तथा विस्तार- क्षेत्रफल की दृष्टि से महाद्वीपों में अफ्रीका का द्वितीय स्थान है। तटवर्ती द्वीपसमूह सहित इसका क्षेत्रफल लगभग 1,16,35,000 वर्ग मील है। इस प्रकार यह महाद्वीप क्षेत्रफल में भारत गणतंत्र के नौ गुने से भी बड़ा है। अक्षांशीय विस्तार की दृष्टि से यह महाद्वीप अद्वितीय है: यह उत्तरी तथा दक्षिणी दोनों ही गोलार्धों के कटिबंधों में लगभग समान दूरी तक विस्तृत है। 37 20 उ.अ. से 34 51 द.अ. तक तथा 17 20 प.दे. 51 12 पू.दे. तक यह फैला हुआ है। इसकी अधिकतम लंबाईं उत्तर में रासबेन सक्का से दक्षिण में अगुलहास अंतरीप तक, लगभग 5,000 मील तथा अधिकतम चौड़ाई पश्चिम में बर्ड अंतरीप से ग्वाडीफुई अंतरीप तक, लगभग 4,500 मील हैं। विषुवत रेखा इस महाद्वीप के मध्य से जाती है। इसलिए इसका अधिकांश, लगभग 90 लाख वर्ग मील, अयनवृत्तीय कटिबंध में पड़ता है। दक्षिण की अपेक्षा यह उत्तर में अधिक चौड़ा है। इसके क्षेत्रफल का लगभग दो तिहाई भाग उत्तरी गोलार्ध में तथा एक तिहाई भाग दक्षिणी गोलार्ध के अंतर्गत आता है।
सीमा- अफ्रीका के पूर्व में हिंद महासागर तथा पश्चिम में अंध (अटलांटिक) महासागर स्थित है। उत्तर में भूमध्यसागर है, जिसकी लंबाईं जिब्राल्टर के मुहाने से सीरिया के तट तक लगभग 2,300 मील है। जिब्राल्टर का मुहाना 15 से 24 मील तक चौड़ा है। सईद बंदरगाह से स्वेज बंदरगाह तक लगभग 107 मील लंबी 650 फुट चौड़ी तथा 37 फुट गहरी स्वेज़ नहर भूमध्यसागर को लालसागर से मिलाती है। इस नहर का उद्घाटन 1869 ई. में हुआ। युद्धकालिक तथा आर्थिक दृष्टि से यह नहर बड़े महत्व की है। हाल में मिस्र ने इस नहर का राष्ट्रीयकरण कर लिया है। इसके निर्माण के पश्चात् भारत से यूरोपीय बंदरगाहों की दूरी चार-पाँच हजार मील कम हो गई है; जब यह नहीं बना था तब अफ्रीका के दक्षिण से होकर जहाजों को जाना पड़ता था। उत्तर-पूर्व में लालसागर बीच में रहने के कारण अफ्रीका एशिया महाद्वीप से पृथक् हो गया है। स्वेज बंदरगाह से दक्षिणपूर्व की ओर लगभग 1,600 मील की दूरी पर यह सागर संगीर्ण हो जाता है। यही संकीर्ण भाग 'बाबुल मंडब' का मुहाना है, जिसका अर्थ अरबी भाषा के अनुसार 'आँसू का द्वार' है। इस स्थान पर नाविकों को सशंक एवं सावधान रहना पड़ता है। इसकी चौड़ाई लगभग 20 मील है और पेरिम नामक द्वीप द्वारा यहाँ जलमार्ग दो भागों में विभक्त हो जाता है।
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