Hindi, asked by rohitkailash2003, 1 month ago

afsar nibandh ka Saransh​

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Answered by Anonymous
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उत्तर- श्री शरद जोशी ने अफसर पर अपना व्यंग्य प्रस्तुत किया है, वे दफ्तर के मुख्य अधिकारी जिसे अफ़सर कहा जाता है, उसके गुणों का बखान करते हुए अपने-अपने व्यंग्य-बाण छोड़ते हैं। वे कहते हैं प्रशासनिक ढाँचे में ढलकर अफसर तैयार होता है । अफसर आता है, चला जाता है किन्तु अफसर मरता नहीं, जिस तरह शरीर के त्याग दिए। जाने पर भी आत्मा नहीं मरती, ठीक उसी तरह कुर्सियाँ बदलती हैं, अफसर की अफ़सरी वही रहती है। शरदजी उसे एक चालबाज इंसान व समय के अनुसार चलने वाले फुर्तीले कछुए की संज्ञा देते हैं। जो समय के साथ अपना रुख किये चलता है, जो सीधा-सादा जीव जीत नहीं बल्कि जीवन को डील करता है। दफ्तर में अफसर से लेकर चपरासी सब घूसखोर हैं, अफसर का बाजार जमा हुआ है, वह दो पैसे की मटकी.भी ठोक बैजाकर लेता है। शरदजी ने अफसर के भ्रष्ट रूप को जो समाज में चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई देता है, उसे अपने व्यंग्य बाणों द्वारा व्यक्त किया है।

अफसर व्यंग्य की प्रासंगिकता वर्तमान में बहुत महती है, क्योंकि उसके साथ दोस्ती नहीं की जा सकती है, लेकिन रिश्ता कायम किया जा सकता है। अफसर के साथ नहीं चला जा सकता, सदैव उसके पीछे चलना होता है। कहावत है, अफसर के सामने और घोड़े की पीछे नहीं आना चाहिये, क्योंकि दोनों पता नहीं कब लात मार दे, निश्चित नहीं है। यह बिल्कुल उचित है कि आगे हो या पीछे हालत बिगड़ने का अंदेश हमेशा रहता है।

Answered by utsrashmi014
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Explanation:

- श्री शरद जोशी ने अफसर पर अपना व्यंग्य प्रस्तुत किया है, वे दफ्तर के मुख्य अधिकारी जिसे अफ़सर कहा जाता है, उसके गुणों का बखान करते हुए अपने-अपने व्यंग्य-बाण छोड़ते हैं। वे कहते हैं प्रशासनिक ढाँचे में ढलकर अफसर तैयार होता है । अफसर आता है, चला जाता है किन्तु अफसर मरता नहीं, जिस तरह शरीर के त्याग दिए। जाने पर भी आत्मा नहीं मरती, ठीक उसी तरह कुर्सियाँ बदलती हैं, अफसर की अफ़सरी वही रहती है। शरदजी उसे एक चालबाज इंसान व समय के अनुसार चलने वाले फुर्तीले कछुए की संज्ञा देते हैं। जो समय के साथ अपना रुख किये चलता है, जो सीधा-सादा जीव जीत नहीं बल्कि जीवन को डील करता है। दफ्तर में अफसर से लेकर चपरासी सब घूसखोर हैं, अफसर का बाजार जमा हुआ है, वह दो पैसे की मटकी.भी ठोक बैजाकर लेता है। शरदजी ने अफसर के भ्रष्ट रूप को जो समाज में चारों ओर प्रत्यक्ष दिखाई देता है, उसे अपने व्यंग्य बाणों द्वारा व्यक्त किया है।

अफसर व्यंग्य की प्रासंगिकता वर्तमान में बहुत महती है, क्योंकि उसके साथ दोस्ती नहीं की जा सकती है, लेकिन रिश्ता कायम किया जा सकता है। अफसर के साथ नहीं चला जा सकता, सदैव उसके पीछे चलना होता है। कहावत है, अफसर के सामने और घोड़े की पीछे नहीं आना चाहिये, क्योंकि दोनों पता नहीं कब लात मार दे, निश्चित नहीं है। यह बिल्कुल उचित है कि आगे हो या पीछे हालत बिगड़ने का अंदेश हमेशा रहता है।

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