अगर आदमी अपने शरीर की,मन की और वाक की अनायास घटने वाली वृत्तियों के विषय में विचार करे तो उसे अपने वास्तविक प्रवृत्ति पहचानने में बहुत सहायता मिले | मनुष्य की नख बढ़ा लेने की जो सहजात वृत्ति है,वह उसके पशुत्व का प्रमाण है | उन्हें काटने की जो प्रवृत्ति है,वह उसकी मनुष्यता की निशानी है |
मेरा मन पूछता है- मनुष्य किस ओर बढ़ रहा है ? पशुता की ओर या मनुष्यता की ओर ? अस्त्र बढ़ाने की ओरि या अस्त्र काटने की ओर ? मेरी निरबोध बालिका ने मानो मनुष्य जाति से ही प्रश्न किया है- जानते हो,नाखून क्यों बढ़ते है ? यह हमारी पशुता के अवशेष हैं | मैं भी पूछता हूँ-जानते हो, ये अस्त्र-शस्त्र क्याें बढ़ रहे हैं ? ये हमारी पशुता की निशानी हैं | स्वराज होने के बाद स्वभावात: ही हमारे नेता और विचारशील नागरिक सोचने लगे हैं की इस देश को सच्चे अर्थ में सुखी कैसे बनाया जाए। हमारी परंपरा महिमामयी और संस्कार उज्ज्वल हैं क्योंकि अपने आप पर, अपने आप द्वारा लगाया हुआ बंधन हमारी संस्कृती की बहुत बड़ी विशेषता है |
मनुष्य पशु से किस बात में भिन्ना है ! उसमें संयम है, दुसरे के सुख-दुख के प्रति समवेदना है, श्रद्धा है, तप है, त्याग है | इसीलिए मनुष्य झगडे़-टंटे को अपना आदर्श नहीं मानता, गुस्से में आकर चढ़- दौड़ने वाले अविवेकी को बुरा समझता है | वचन,मन एवं शरीर से किए गए असत्याचरण को गलत मानता है |
ऐसा कोई दिन आ सकता है जब मनुष्य के नाखूनाें का बढ़ना बंद हो जाएगा | प्राणिशास्त्रियों का ऐसा अनुमान है कि मनुष्य का अनावश्यक अंग उसी प्रकार झड़ जाएगा,जिस प्रकार उसकी पूँछ }झड़ गई है | ऊस दिन मनुष्य की पशुता भी लुप्त हो जाएगी | शायद उस दिन वह मरणास्त्रों का प्रयोग भी बंद कर देगा | नाखून का बढ़ना मनुष्य के भीतर की पशुता की निशानी है और उसे नाहीं बढ़ने देना मनुष्य की अपनी इच्छा है, अपना आदर्श है |
मनुष्य में जो घृणा है जो अनायास बिना सिखाए आ जाती है, वह पशुत्व का द्योतक है | अपने को सयंत रखना, दूसरे के मनोभावों का आदर करना मनुष्य का स्वधर्म हए | बच्चे यह जानें तो अच्छा हो कि अभ्यास और तप से प्राप्त वस्तुएँ मनुष्य की महिमा को सूचित करती हैं |
मनुष्य की चरितार्थता प्रेम में है, मैत्री में है, त्याग में है, अपने को सबके मंगल के लिए नि:शेष भाव से दे देने में है | नाखूनों का बढ़ना मनुष्य की उस अंध सहजात वृत्ति का परिणाम है जो उसके जीवने में सफलता ले आना चाहती है |
उसको काट देना उस स्वनिर्धारित आत्माबंधन का फल है जो उसे चरितार्थता की और ले जाती है |
नाखून बढ़ते हैं तो बढ़ें, मनुष्य उन्हें बढ़ने नहीं देगा |
ईस परिच्छेद में प्रयुक्त शब्द युग्म लिखिए :
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Explanation:
aapna sarir ko hamesa saaf suthare rakhna chahiye nakhun ko kaatlena chahiye
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