अगर पेड़ भी चलते होते
अगर पेड़ भी चलते होते,
कितने मज़े हमारे होते।
बाँध तने से उसके रस्सी,
जहाँ कहीं भी हम चल देते।
अगर कहीं पर धूप सताती,
उसके नीचे हम छिप जाता
भूख सताती अगर अचानक,
ताड़ मधुर फल उसके खात।
आती कीचड़ बाढ़ कहीं तो.
ऊपर उसके झट चढ़ जाते।
-दिविक रमेश
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