Hindi, asked by sheikhsultan494, 1 month ago

अगर परीक्षाएं नहीं होती तो.
निबंध लेखन. ​

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Answered by Anonymous
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हम सभी उस दौर से निकले है जब परीक्षाओं के सीजन में पूरा दिन किताबों पर बैठे बैठे टेंशन में बीत जाया करता था. पास होने के लिए तथा फेल होने के डर तथा घर वालो की डांट से बचने के लिए परीक्षा में अच्छे अंकों से उतीर्ण होना हर विद्यार्थी चाहता हैं. स्कूल तथा कॉलेज में अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं का आयोजन होता हैं बीच बीच में परीक्षणों का भी आयोजन होता रहता हैं.

हर बच्चा पास होने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर सालभर पढ़ाई में जुटा रहता हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से   किताब   और परीक्षा के बीच गहरा सम्बन्ध हैं. यह परीक्षा का ही भय होता है जिसके चलते पढाई में कमजोर होने के नाते कोचिंग भी लेनी पड़ती हैं. तथा वह अपने परफोर्मेंस को सुधारने के प्रयत्न करता रहता हैं.

यदि परीक्षा ही न होगी तो बच्चों में पढ़ाई के प्रति न भय न होगा न ही कोई आकर्षण. वह परीक्षा पास करने या अगले वर्ष में प्रवेश के सम्बन्ध में कोई चिंता नहीं करेगा. यह भारत के भविष्य तथा बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. बच्चें खेलकूद में अपना अधिकतर समय बितायेगे वे शिक्षा से पूर्ण रूप से कटकर पिछड़ जाएगे. समय पर घर आना, पढ़ना, गृह कार्य करना, समय पर स्कूल जाना आदि छोड़ देगे.                                             यदि परीक्षा ना होती तो हमें कोई भी भय नहीं होता हर एक विद्यार्थी यह सोच कर पढ़ाई करता है कि आने वाले समय में उसकी परीक्षा हो और वह उतीर्ण हो लेकिन अगर परीक्षा ही ना होती तो उसे किसी भी तरह का भय नहीं होता और वह परीक्षा की तैयारी नहीं करता वाकई में परीक्षा का भय ही एक स्टूडेंट के लिए लाभप्रद साबित होता है.

यदि परीक्षा ना होती तो स्टूडेंट पढ़ाई नहीं करते और हमारा देश पिछड़ता जाता बच्चों को तरह तरह के खेल खेलने में बहुत ही अच्छा लगता है. वह क्रिकेट,कबड्डी इस तरह के तरह तरह के खेल खेलते रहते हैं इनमें उनकी बहुत ही रुचि होती है यदि परीक्षा ना होती तो बच्चे दिन दिन भर खेलते रहते और इस वजह से ज्ञान प्राप्त करने के लिए वह ज्यादा समय नहीं लगाते और उनका भविष्य अंधकारमय हो सकता था इसलिए परीक्षा हर एक बच्चे स्टूडेंट्स के लिए बड़ी ही लाभदायक साबित होती है.

भारत को युवाओं का देश कहा जाता हैं और एक मिनट के लिए सोचिये यदि ऐसे बेफिक्र यूथ की फौज जो अपने करियर के प्रति बिलकुल भी फिक्रमंद नहीं रहते हैं. आगे चलकर वे उच्च शिक्षा में दुनिया के अन्य देशों के बच्चों से कैसे कॉम्पीटिशन कर पाएगे हाँ इतना अवश्य है कि परीक्षा को लेकर बच्चों में बड़ा तनाव होता हैं यहाँ तक कि बच्चे खाना पीना तक भूल जाते हैं.

यदि परीक्षा ना हो तो बच्चें अवश्य बहुत खुश होंगे. मगर यह कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि कई समस्याओं को जन्म देनी वाली स्थिति हो सकती हैं. बच्चों को परीक्षा के तनाव से बचाने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता हैं, प्राथमिक कक्षाओं में फेल न करने की नीति अपनाई जा सकती हैं. मगर परीक्षा न हो यह कपोल कल्पना ही हैं. इससे न हमारे बच्चों, माता पिता देश या समाज किसी का फायदा नहीं होने वाला हैं.

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◦•●◉✿ нєєγα ✿◉●•◦

यदी परीछाएं होती

हम सभी उस दौर से निकले है जब परीक्षाओं के सीजन में पूरा दिन किताबों पर बैठे बैठे टेंशन में बीत जाया करता था. पास होने के लिए तथा फेल होने के डर तथा घर वालो की डांट से बचने के लिए परीक्षा में अच्छे अंकों से उतीर्ण होना हर विद्यार्थी चाहता हैं. स्कूल तथा कॉलेज में अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं का आयोजन होता हैं बीच बीच में परीक्षणों का भी आयोजन होता रहता हैं.यदि परीक्षा ही न होगी तो बच्चों में पढ़ाई के प्रति न भय न होगा न ही कोई आकर्षण. वह परीक्षा पास करने या अगले वर्ष में प्रवेश के सम्बन्ध में कोई चिंता नहीं करेगा. यह भारत के भविष्य तथा बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. यदि परीक्षा ना होती तो हमें कोई भी भय नहीं होता हर एक विद्यार्थी यह सोच कर पढ़ाई करता है कि आने वाले समय में उसकी परीक्षा हो और वह उतीर्ण हो लेकिन अगर परीक्षा ही ना होती तो उसे किसी भी तरह का भय नहीं होता और वह परीक्षा की तैयारी नहीं करता वाकई में परीक्षा का भय ही एक स्टूडेंट के लिए लाभप्रद साबित होता है.यदि परीक्षा ना हो तो बच्चें अवश्य बहुत खुश होंगे. मगर यह कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि कई समस्याओं को जन्म देनी वाली स्थिति हो सकती हैं. बच्चों को परीक्षा के तनाव से बचाने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता हैं, प्राथमिक कक्षाओं में फेल न करने की नीति अपनाई जा सकती हैं.

हम सभी उस दौर से निकले है जब परीक्षाओं के सीजन में पूरा दिन किताबों पर बैठे बैठे टेंशन में बीत जाया करता था. पास होने के लिए तथा फेल होने के डर तथा घर वालो की डांट से बचने के लिए परीक्षा में अच्छे अंकों से उतीर्ण होना हर विद्यार्थी चाहता हैं. स्कूल तथा कॉलेज में अर्द्धवार्षिक तथा वार्षिक परीक्षाओं का आयोजन होता हैं बीच बीच में परीक्षणों का भी आयोजन होता रहता हैं.यदि परीक्षा ही न होगी तो बच्चों में पढ़ाई के प्रति न भय न होगा न ही कोई आकर्षण. वह परीक्षा पास करने या अगले वर्ष में प्रवेश के सम्बन्ध में कोई चिंता नहीं करेगा. यह भारत के भविष्य तथा बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. यदि परीक्षा ना होती तो हमें कोई भी भय नहीं होता हर एक विद्यार्थी यह सोच कर पढ़ाई करता है कि आने वाले समय में उसकी परीक्षा हो और वह उतीर्ण हो लेकिन अगर परीक्षा ही ना होती तो उसे किसी भी तरह का भय नहीं होता और वह परीक्षा की तैयारी नहीं करता वाकई में परीक्षा का भय ही एक स्टूडेंट के लिए लाभप्रद साबित होता है.यदि परीक्षा ना हो तो बच्चें अवश्य बहुत खुश होंगे. मगर यह कोई समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि कई समस्याओं को जन्म देनी वाली स्थिति हो सकती हैं. बच्चों को परीक्षा के तनाव से बचाने के लिए उनके पाठ्यक्रम को कम किया जा सकता हैं, प्राथमिक कक्षाओं में फेल न करने की नीति अपनाई जा सकती हैं.

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