अगर सूरज, चाँद, तारे नहीं होते तो क्या होता?
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यही चंद्रमा यदि न होता, तो पृथ्वी पर का नज़ारा कुछ और ही होता. न चांदनी रातें होतीं, न कवियों की कल्पनाएं. रातें और भी अंधियारी और कुछ और ठंडी होतीं- इसलिए, क्योंकि चंद्रमा अपने ऊपर पड़ने वाले सूर्य-प्रकाश और उसकी गर्मी का एक हिस्सा पृथ्वी की तरफ परावर्तित कर देता है.
सबसे बड़ी बात यह होती कि पृथ्वी पर के समुद्रों में ज्वार-भटा भी नहीं आता. चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल से ही पृथ्वी पर ज्वार-भाटा पैदा होता है. बहुत संभव है कि समुद्री जलधाराओं की दिशाएं भी आज जैसी नहीं होतीं.
#चांद बिना दिन होता छोटा.
एडविन एल्ड़्रिन 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा पर पहली बार पैर खने वाले नील आर्मस्ट्राँग के साथी थे
ज्वार-भाटा अपनी धुरी पर घूमने की पृथ्वी की अक्षगति को धीमा करते हैं. ज्वार-भाटे न होते तो पृथ्वी पर दिन 24 घंटे से कम का होता. कितना कम होता, कहना कठिन है- शायद 6 घंटे छोटा होता, शायद 10 घंटे भी छोटा होता.
यह भी हिसाब लगाया गया है कि डायनॉसरों वाले युग में, जब चंद्रमा आज की अपेक्षा पृथ्वी के निकट हुआ करता था, उसके गुरुत्वाकर्षण प्रभाव के कारण पृथ्वी पर एक दिन 24 नहीं, साढ़े 23 घंटे का हुआ करता था और कुछेक अरब साल पहले केवल 4 से 5 घंटे का ही एक दिन हुआ करता था.