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जयति ओ३म् ध्वज व्योम-बिहारी।
अस्त्र विश्व-प्रेम-प्रतिमा अति प्यारी।। करे-
सत्य सुधा बरसाने वाला
प्रमका स्नेह-लता सरसाने वाला
भाव-1 साम्य-सुमन विकसाने वाला लाज
विश्व-विमोहक भवभयहारी।।1।।
हा इसके नीचे बढ़े अभय मन।
सत्पथ पर सब धर्मधुरी जन-
ddय वैदिक रवि का हो शुभ उदयन।
पका शत आलोकित होवें दिशि सारी।।2।।,
इससे सारे क्लेश शमन हों।कट ,
दुर्मति दानव द्वेष दमन हों। जसम
अति उज्ज्वल अति पावन मन हों।
प्रेम तरंग बहे सुखकारी।। 3 ।।
स
इसी ध्वजा के नीचे आकर।
पावना ऊँच नीच का भेद-भुलाकर ।
मिले विश्व मुद मंगल गाकर।
पन्थाई पाखंड बिसारी।। 4 ।।
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