'अहा! बरसात का पहला दिन' विषय पर एक संक्षिप्त अनुच्छेद लिखिए।
Answers
Answer:
mark me as brainlist Bhai
Explanation:
बरसात के उस पहले दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता । आषाढ़ का महीना लग चुका था और सूर्यदेवता आग बरसा रहे थे। पेड़-पौधे मुरझा रहे थे। बागों की बहारें गायब हो गई थी। नदी नाले, तालाब और झीलों का पानी सूख चला था। पशु, पक्षी, मनुष्य सभी प्राणी मारे गरमी के बेचैन हो रहे थे। सभी के मन में एक ही चाह थी कि वर्षा हो, शीतलता मिले। बिजली के पंखे चल रहे थे, कहीं एअरकंडीशंड मशीन लगे थे, कई घरों के दरवाजों पर पानी में तर खसटट्टियाँ झूल रही थीं। फिर भी लोगों की आँखें आकाश की ओर लगी हुई थी।
इस गर्मी से तंग आकर मैं भी गाँव से दूर एक पहाड़ी पर चला गया था। एकाएक आकाश मटमैले बादलों से ढंक गया। बादलों की गर्जना होने लगी। बिजली की कड़कड़ाहट और पवन की सरसराहट ने पूरे वातावरण को बदल दिया। धीरे-धीरे पानी की बूंदें गिरने लगीं।
अहा ! आषाढ़ की यह पहली बौछार कितनी आलादक थी ! बरसात की बूंदें सुहावनी और सुखद लग रही थी ! उनकी ठंडक ने कलेजे को तर कर दिया। धरती भी भीग गई । उसकी सौंधी गंध चारों ओर फैल गई। धीरे-धीरे वर्षा का जोर बढ़ा। धरती से आकाश तक जल-ही-जल दीखने लगा। मैं बैठा रहा, प्रकृति के रूप में आनेवाले इस आकस्मिक परिवर्तन को देखता रहा।
बरसात का प्रभाव
उस पहाड़ी पर से चारों ओर पानी-ही-पानी दिखाई दे रहा था। ऊपर से नीचे बहते पानी की आवाज बड़ी मधुर लग रही थी। पेड़ों की पत्तियाँ पानी से धुलकर चमकने लगी। पौधे लहलहाने लगे। कलियाँ खिलने लगी और फूल हँसने लगे। सूखी-सूखी घास का भी अंग-अंग लहक उठा था। सूखी लताओं में भी जान आ गई थी । पास ही बहती हुई नदी में धीरे-धीरे पानी बढ़ने लगा। आकाश में उड़ती हुई पक्षियों की टोलियाँ मानो बादलों को धन्यवाद दे रही थीं। अब मयूर नृत्य करने लगे। पपीहे ने ‘पिऊ पिऊ’ की मादक ध्वनि से वातावरण को रसमय बना दिया। मेढक की टर्रटर्र और झींगुरों की झनकार सुनाई देने लगीं। सबकी प्यास मिट गई। सारी प्रकृति वर्षा के आगमन से झूम उठी थी।
वातावरण में प्रसन्नता
मैं पहाड़ी से नीचे उतरा । तलहटी में चरवाहे अपने पशुओं को चरा रहे थे। एक चरवाहा विरहा अलाप रहा था। उसी समय सामने की सड़क से एक युवक गाता हुआ निकला, “घिर आई बदरिया सावन की । सावन की मन भावन की।” मैं एक बाग में से गुजरा । सारे बाग में नई रौनक आ गई थी। दूर-दूर फैले हुए खेतों में किसान हल जोतने लग गए थे।