अहंकार का त्याग लघुकथा
Answers
Answer:
उसके भीतर अहंकार की भावना जागृत हो गई. वह स्वयं को सर्श्रेष्ठ मूर्तिकार मानने लगा. उम्र बढ़ने के साथ जब उसका अंत समय निकट आने लगा, तो वह मृत्यु से बचने की युक्ति सोचने लगा. वह किसी भी तरह स्वयं को यमदूत की दृष्टि से बचाना चाहता था, ताकि वह उसके प्राण न हर सके
Answer:
महेश अपने माता पिता का इकलौता बेटा था। वह पढ़ाई में भी बहुत होशियार था। उसके माता पिता को उससे काफी आशायें थी। उनकी हार्दिक अभिलाषा थी कि वह आइ.ए.एस में उत्तीर्ण होकर उच्च अधिकारी के रूप में देश की सेवा करे। उसकी शिक्षा के लिये उन्होंने अपना घर गिरवी रखकर धन का प्रबंध किया। वे नौकरी पेशा व्यक्ति थे जो किसी तरह अपना घर चला रहे थे। उनकी पत्नी, बेटे की सफलता के लिये प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करती थी।
महेश के कठोर परिश्रम और प्रभु कृपा से उसका चयन आइ.ए.एस में हो गया जिससे उसके माता पिता अत्यंत प्रसन्न हो गये। विशेष प्रशिक्षण पाकर जब वह घर वापस आता है तो अपनी माता का अभिवादन तो करता है परंतु पिता से अनमने ढंग से बात करता है। उसके इस व्यवहार से माता पिता को दुख पहुँचता है और वे महसूस करते है कि उसे पद का घमंड हो गया है। वह मन में सोचता था कि उसके पिता का पद उसके सामने कुछ भी नहीं है।
एक दिन जब माँ के द्वारा उसकी शिक्षा हेतु पिताजी के द्वारा किये गये त्याग का पता होता है तो उसका घमंड खत्म होकर उसे स्वयं के व्यवहार पर अत्यंत दुख एवं लज्जा महसूस होती है। अब वह अपने पिता से सामान्य व्यवहार करने लगता है परंतु पिता उसे उपेक्षित करने लगते है वह समझ जाता है कि उसकी बातों से पिता को बहुत दुख पहुँचा है।
वह अपने पिता के चरण छूकर माफी माँगता है और कहता है कि उनका ऋण वह कभी नहीं चुका सकता। पिता अपने सब गिले शिकवे भूलकर उसे गले से लगाकर कहते है कि अहंकार ही सबसे बडी कठिनाई है जो व्यक्ति के पतन का कारण बनता है, तुमने समय रहते इसे पहचान लिया है। अब जीवन में सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी।