अहि रहीम परकाजहित, संपत्ति संंयहि सुजान। दोहे का भावार्थ लिखिए।
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कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।। 1।। अर्थ : कविवर रहीम कहते हैं कि जिस तरह पेड़ कभी स्वयं अपने फल नहीं खाते और तालाब कभी अपना पानी नहीं पीते उसी तरह सज्जनलोग दूसरे के हित के लिये संपत्ति का संचय करते हैं। तन रहीम है कर्म बस, मन राखो ओहि ओर
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