Economy, asked by bhardwajupasana418, 8 months ago

अहिसा का अर्थ एवं
एवं स्वरूप बताए।

Answers

Answered by kashyapanuj884
3

Answer:

अहिंसा का सामान्य अर्थ है 'हिंसा न करना'। इसका व्यापक अर्थ है - किसी भी प्राणी को तन, मन, कर्म, वचन और वाणी से कोई नुकसान न पहुँचाना। मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है।

Explanation:

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Answered by Prasoon2006
12

Answer:

अहिंसा

अहिंसा का सामान्य अर्थ है-अ + हिंसा। यानि हिंसा का अभाव। किसी प्राणी का घात न करना, अपशब्द न बोलना तथा मानसिक रूप से किसी का अहित न सोचना, एक शब्द में यदि कहा जाए तो दुर्भाव का अभाव तथा समभाव का निर्वाह। मुख्य रूप से अहिंसा के दो प्रकार होते है-1. निषेधात्मक तथा 2. विधेयात्मक। निषेध का अर्थ होता है किसी चीज को रोकना, न होने देना। अत: निषेधात्मक अहिंसा का अर्थ होता है किसी भी प्राणी के प्राणघात का न होना या किसी भी प्राणी को किसी प्रकार का कष्ट न देना। अहिंसा का निषेधात्मक रूप ही अक्तिाक लोगों के ध्यान में आता है किन्तु अहिंसा केवल कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं को न करने में ही नहीं होती है, अपितु कुछ विशेष प्रकार की क्रियाओं के करने में भी होती है, जैसे-दया, करुणा, मैत्री, सहायता, सेवा, क्षमा करना आदि। यही सब क्रिया विधेयात्मक अहिंसा कहलाती है।

अहिंसा के रूप

अहिंसा के दो रूप मुख्यत: स्वीकार किये गये है-भाव अहिंसा यानि मन में हिंसा न करने की भावना का जाग्रत होना। द्रव्य अहिंसा यानि मन में आये हुए अहिंसा के भाव को क्रियारूप देना अर्थात् उसका वचन और काय से पालन करना, जैसे-हिंसा न करने का संकल्प करने वाला वास्तव में जिस दिन से संकल्प करता है, उस दिन से किसी भी प्राणी की हिंसा न करता है, न कराता है और न करने वाले का अनुमोदन ही करता है। भाव और द्रव्य हिंसा के आधार पर अहिंसा के चार विकल्प इस प्रकार बन सकतेहै-

  1. भाव अहिंसा और द्रव्य अहिंसा-कोई व्यक्ति मन में संकल्प करता है कि वह स्थूल प्राणी की हिंसा नहीं करेगा और सचमुच वह ऐसा ही करता भी है तो ऐसी अहिंसा भावरूप तथा द्रव्यरूप दोनों ही हुई। 

2. भाव अहिंसा किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं-कोई व्यक्ति किसी भी प्राणी की हिंसा न करने का संकल्प करके यत्नपूर्वक अपनी राह पर चार हाथ भूमि देखते हुए चलता है, फिर भी बहुत से जीवों का अनजाने में घात हो जाता है। अत: यहाँ पर भाव अहिंसा तो हुई किन्तु द्रव्य अहिंसा नहीं हुई। 

3. भाव अहिंसा नहीं परन्तु द्रव्य अहिंसा-मछुआ मछली मारने के उद्देश्य से नदी किनारे जाल फैलाये हुए बैठा रहता है, किन्तु संयोगवश कभी-कभी वह एक भी मछली नहीं पकड़ पाता है। अत: यहाँ पर भाव अहिंसा तो नहीं किन्तु द्रव्य अहिंसा है। 

4. न भाव अहिंसा और न द्रव्य अहिंसा-मांसादि के लोभ में पड़ा हुआ आदमी जब मृग आदि जीवों को मारता है तो उसके द्वारा न भाव अहिंसा होती है और न द्रव्य अहिंसा ही।

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