अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी पर निबंध लिखे।,
समय का सदुपयोग पे निबंध लिखे।,
प्रिय ऋतू निबंध लिखे।
और
तमिलनाडु पे निबंध लिखे।
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उत्तर:
महात्मा गांधी
महात्मा गाँधी भारत में "बापू" या "राष्ट्रपिता" के रूप में बहुत प्रसिद्ध हैं। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत को राष्ट्रवाद के नेता के रूप में नेतृत्व किया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात, भारत में हुआ था। 1948 में 30 जनवरी को उनका निधन हो गया। एम.के. गांधी की हत्या हिंदू कार्यकर्ता, नाथूराम गोडसे द्वारा की गई थी, जिसे बाद में भारत सरकार द्वारा दंड के रूप में फांसी दी गई थी। उन्हें 1948 के बाद से रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा "शहीद ऑफ द नेशन" के रूप में एक और नाम दिया गया है।
तमिलनाडु
पूरे तमिलनाडु राज्य में कर्नाटक पठार से सटे पहाड़ी भागों को छोड़कर क्षेत्र शामिल है। इस क्षेत्र की प्रमुख भाषा तमिल है। यह क्षेत्र इलायची पहाड़ियों के पूर्व और कर्नाटक पठार के दक्षिण में स्थित है। पूर्व में, एक जलोढ़ मैदान तट के साथ चलता है।
इस मैदान को कोरोमंडल तटीय मैदान के रूप में जाना जाता है और यह 80 किमी से अधिक है। कुछ स्थानों पर चौड़ाई में। समुद्र तट के साथ उठाए गए समुद्र तट और रेत के पत्थरों का जमाव दर्शाता है कि तटीय मैदान कभी समुद्र के नीचे था। तट के साथ भूमि की पट्टी आम तौर पर टिब्बा या हवा में उड़ने वाली रेत और लैगून से घिरी हुई है। टिब्बा विशेष रूप से तिरुनेलवेली जिले के तट के साथ विकसित होता है जहां इसे टेरिस कहा जाता है।
समय का सदुपयोग
समय पैसे से अधिक है क्योंकि खर्च किए गए धन को फिर से कमाया जा सकता है लेकिन एक बार बिताया गया समय कभी भी अर्जित नहीं किया जा सकता है। एक आम कहावत है कि "समय और ज्वार किसी का इंतजार नहीं करते"। यह उतना ही सत्य है जितना कि पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व। समय बिना रुके निरंतर चलता रहता है। यह कभी किसी का इंतजार नहीं करता है। तो, हमें अपने जीवन के किसी भी स्तर पर उद्देश्य और अर्थ के बिना अपना कीमती और अमूल्य समय कभी नहीं बिताना चाहिए। हमें हमेशा समय का अर्थ समझना चाहिए और किसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए सकारात्मक तरीके के अनुसार इसका उपयोग करना चाहिए। हमें लगातार चलने वाले इस समय से कुछ सीखना चाहिए। अगर यह बिना किसी रोक-टोक के नियमित रूप से चलता है, तो हम क्यों नहीं।
गांधी की मां पुतलीबाई अत्यधिक धार्मिक थीं। उनकी दिनचर्या घर और मन्दिर में बंटी हुई थी। वह नियमित रूप से उपवास रखती थीं और परिवार में किसी के बीमार पड़ने पर उसकी सेवा सुश्रुषा में दिन-रात एक कर देती थीं। मोहनदास का लालन-पालन वैष्णव मत में रमे परिवार में हुआ और उन पर कठिन नीतियों वाले जैन धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। जिसके मुख्य सिद्धांत, अहिंसा एवं विश्व की सभी वस्तुओं को शाश्वत मानना है। इस प्रकार, उन्होंने स्वाभाविक रूप से अहिंसा, शाकाहार, आत्मशुद्धि के लिए उपवास और विभिन्न पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।
गांधीजी विद्यार्थी के रूप में - मोहनदास एक औसत विद्यार्थी थे, हालांकि उन्होंने यदा-कदा पुरस्कार और छात्रवृत्तियां भी जीतीं। वह पढ़ाई व खेल, दोनों में ही तेज नहीं थे। बीमार पिता की सेवा करना,घरेलू कामों में मां का हाथ बंटाना और समय मिलने पर दूर तक अकेले सैर पर निकलना, उन्हें पसंद था। उन्हीं के शब्दों में उन्होंने 'बड़ों की आज्ञा का पालन करना सीखा, उनमें मीनमेख निकालना नहीं।'
उनकी किशोरावस्था उनकी आयु-वर्ग के अधिकांश बच्चों से अधिक हलचल भरी नहीं थी। हर ऐसी नादानी के बाद वह स्वयं वादा करते 'फिर कभी ऐसा नहीं करूंगा' और अपने वादे पर अटल रहते। उन्होंने सच्चाई और बलिदान के प्रतीक प्रह्लाद और हरिश्चंद्र जैसे पौराणिक हिन्दू नायकों को सजीव आदर्श के रूप में अपनाया।
गांधी जी जब केवल तेरह वर्ष के थे और स्कूल में पढ़ते थे उसी वक्त पोरबंदर के एक व्यापारी की पुत्री कस्तूरबा से उनका विवाह कर दिया गया।
युवा गांधी जी - 1887 में मोहनदास ने जैसे-तैसे 'बंबई यूनिवर्सिटी' की मैट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर स्थित 'सामलदास कॉलेज' में दाखिल लिया। अचानक गुजराती से अंग्रेजी भाषा में जाने से उन्हें व्याख्यानों को समझने में कुछ दिक्कत होने लगी। इस बीच उनके परिवार में उनके भविष्य को लेकर चर्चा चल रही थी।
अगर निर्णय उन पर छोड़ा जाता, तो वह डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन वैष्णव परिवार में चीरफाड़ की इजाजत नहीं थी। साथ ही यह भी स्पष्ट था कि यदि उन्हें गुजरात के किसी राजघराने में उच्च पद प्राप्त करने की पारिवारिक परंंपरा निभानी है तो उन्हें बैरिस्टर बनना पड़ेगा और ऐसे में गांधीजी को इंग्लैंड जाना पड़ा।
यूं भी गांधी जी का मन उनके 'सामलदास कॉलेज' में कुछ खास नहीं लग रहा था, इसलिए उन्होंने इस प्रस्ताव को सहज ही स्वीकार कर लिया। उनके युवा मन में इंग्लैंड की छवि 'दार्शनिकों और कवियों की भूमि, संंपूर्ण सभ्यता के केन्द्र' के रूप में थी। सितंबर 1888 में वह लंदन पहुंच गए। वहां पहुंचने के 10 दिन बाद वह लंदन के चार कानून महाविद्यालय में से एक 'इनर टेंपल'में दाखिल हो गए।