अहिंसा का दूसरा नाम या दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप या दूसरा नाम स्वार्थ है।
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हमारी संस्कृति का मूलाधार इसी अहिंसा-तत्व पर सीपित रहा है। जहाँ-जहाँ हमारे नैतिक सिद्धांतों का वर्णन आया है, अहिंसा को ही उसमें मुख्य स्थान दिया गया है। अहिंसा का दूसरा रूप त्याग है और हिंसा का दूसरा रूप या दूसरा नाम स्वार्थ है, जो प्रायः भोग के रूप में हमारे सामने आता है।
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arnavbhaskardhumal12345
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