अहिंसा और सत्याग्रह अमोघशास्त्र कैसे हैं?
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सत्याग्रह, उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में गांधी जी के दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून भंग शुरु करने तक संसार" नि:शस्त्र पतिकार' अथवा निष्क्रिय प्रतिरोध (पैंसिव रेजिस्टेन्स) की युद्धनीति से ही परिचित था।इसकी वजह केवल काले गोर के बीच भेद भाव था । यदि प्रतिपक्षी की शक्ति हमसे अधिक है तो सशस्त्र विरोध का कोई अर्थ नहीं रह जाता वे अहिंषा को मानते थे इसलिए वे यह लड़ाई लड़ रहे थे । सबल प्रतिपक्षी से बचने के लिए "नि:शस्त्र प्रतिकार' की युद्धनीति का अवलंबन किया जाता था। इंग्लैंड में स्त्रियों ने मताधिकार प्राप्त करने के लिए इसी "निष्क्रिय प्रतिरोध' का मार्ग अपनाया था। इस प्रकार प्रतिकार में प्रतिपक्षी पर शस्त्र से आक्रमण करने की बात छोड़कर उसे दूसरे हर प्रकार से तंग करना, छल कपट से उसे हानि पहुँचाना, अथवा उसके शत्रु से संधि करके उसे नीचा दिखाना आदि उचित समझा जाता था।
गांधी जी को इस प्रकार की दुर्नीति पसंद नहीं थी। दक्षिण अफ्रीका में उनके आंदोलन की कार्यपद्धति बिल्कुल भिन्न थी उनका सारा दर्शन ही भिन्न था अत: अपनी युद्धनीति के लिए उनको नए शब्द की आवश्यकता महसूस हुई। सही शब्द प्राप्त करने के लिए उन्होंने एक प्रतियोगिता की जिसमें स्वर्गीय मगनलाल गांधी ने एक शब्द सुझाया "सदाग्रह' जिसमें थोड़ा परिवर्तन करके गांधी जी ने "ह' शब्द स्वीकार किया। अमरीका के दार्शनिक थोरो ने जिस सिविल डिसओबिडियेन्स (सविनय अवज्ञा) की टेकनिक का वर्णन किया है, "सत्याग्रह' शब्द उस प्रक्रिया से मिलता जुलता था।
"सत्याग्रह' का मूल अर्थ है सत्य के प्रति आग्रह (सत्य अ आग्रह) सत्य को पकड़े रहना और इसके साथ अहिंषा को मानना । अन्याय का सर्वथा विरोध(अन्याय के प्रति विरोध इसका मुख्या वजह था ) करते हुए अन्यायी के प्रति वैरभाव न रखना, सत्याग्रह का मूल लक्षण है। हमें सत्य का पालन करते हुए निर्भयतापूर्वक मृत्य का वरण करना चाहिए और मरते मरते भी जिसके विरुद्ध सत्याग्रह कर रहे हैं, उसके प्रति वैरभाव या क्रोध नहीं करना चाहिए।'
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