अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्।।16.2।।
तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।16.3।।
Translation
।।16.2।।अहिंसा, सत्यभाषण; क्रोध न करना; संसारकी कामनाका त्याग; अन्तःकरणमें राग-द्वेषजनित हलचलका न होना; चुगली न करना; प्राणियोंपर दया करना सांसारिक विषयोंमें न ललचाना; अन्तःकरणकी कोमलता; अकर्तव्य करनेमें लज्जा; चपलताका अभाव।
।।16.3।।तेज (प्रभाव), क्षमा, धैर्य, शरीरकी शुद्धि, वैरभावका न रहना और मानको न चाहना, हे भरतवंशी अर्जुन ! ये सभी दैवी सम्पदाको प्राप्त हुए मनुष्यके लक्षण हैं।
I know that this ia not a question. I am just sharing knowledge.
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नमस्ते, मुझे खेद है अगर ये शब्द खराब हैं, लेकिन मैं अनुवादक का उपयोग कर रहा हूं। आपके लिखे कुछ भी मुझे समझ में नहीं आया, लेकिन पता है कि सुंदर शब्द थे, मैंने बहुत कोशिश की मुझे समझ नहीं आया कि मैं माफी चाहता हूं ... मैं आपसे सहमत हूं, कभी भी जीवित न रहें !!!
:D
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no bro
I can't ins.tall that app
bcoz space is not there
hahahahaha✌
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