Hindi, asked by thelms6285, 6 months ago

अहिंसा' विषय पर 80-85 शब्दों में एक अनुच्छेद लिखिएl

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Answered by anitasingh30052
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अहिंसा पर अनुच्छेद ।

शास्त्रों में अहिंसा को पंच यमों में से एक माना गया है । किसी प्राणी का अकारण घात न करना या किसी को किसी भी प्रकार पीड़ा न पहुँचाना अहिंसा है । अहिंसा सत्य का प्राण है, स्वर्ग का द्वार है, जगत् की माता है, आनन्द का अजस्र स्रोत है, उत्तम गति है, शाश्वत श्री है और मानवमात्र के लिए परम धर्म है ।

शत-पथ ब्राह्मण के वचन ‘अहिंसा सत्य अस्तेय ब्रह्मचर्य परिग्रह’, मानस का उद्‌घोषण ‘परमधर्म श्रुति विदित अहिंसा’, योग दर्शन की उक्ति ‘सर्वत्र सर्वदा सर्वभूतानाम नभिदोह अहिंसा’, पुराणों का सार ‘पापाय परपीडनम’ तथा वैदिक युग की मान्यता ‘अहिंसा परमो धर्म’ अहिंसा के महत्व का समर्थन हैं ।

प्राचीन ग्रन्थों और महर्षियों के उद्‌घोषण, ‘आत्मवत् सर्वभूतेष’, ‘सर्व भूतेषु कल्याणेषु’, ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अहिंसा के प्रेरक हैं । इतना ही नहीं, महाभारत तो दुष्टों की हिंसा को अहिंसा मानता है, ‘अहिंसा साधुहिं सेतिश्रेयान्धर्म परिग्रह’ ।

‘प्रभुत्त योग’ के लक्षण देखिए-मुर्दाबाद के नारों में, सम्पत्ति को भस्म करने में पुलिस सेना से टक्कर लेने में, बसों के अपहरण, टायर पंचर तथा भस्म करने में, हड़ताल करने में, लूट-मार में, पत्थर मारकर भवनों और मनुष्यों को आहत करना ‘प्रभत्तयोग’ है । यह भस्मासुरीय आचरण स्वयं का विनाशक है ।

कायरता, भीरूता, दुर्बलता, नपुंसकता, परिस्थितियों से साक्षात्कार का अभाव, मनोबल की हीनता के नाम पर समर्पण अहिंसा नहीं । यह अहिंसा का ढोंग है, प्रदर्शन है, प्रवंचना है । आततायी लोगों के अत्याचार सहन करना, प्रतिकार या प्रतिरोध न करना अहिंसा नहीं । धर्म विरोधी आचरण अहिंसा नहीं ।

असामाजिक तत्वों के अनाचार को सहन अहिंसा नहीं । अत: अहिंसा वीरता का भूषण है तो कायर के भाल का कलंक । ईर्ष्या-द्वेष से रहित, लोभ-लालच, स्वार्थ से ऊपर उठकर, सौम्य व्यवहार, मधुर तथा हितकर वचन पर पीड़ा हरण अहिंसा के विविध सोपान हैं ।

राज्य के स्थान पर वनवास मिलने पर विमाता कैकेयी के प्रति श्रीराम का लेशमात्र भी मन में विपरीत न सोचना, द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण का दीन-दरिद्र मित्र, सुदामा का सेवा सत्कार, युधिष्ठिर के यज्ञ में श्रीकृष्ण का जूठी पत्तल उठाने का कर्म, शत्रु-वर्ण की नारी को मां कहकर, सुरक्षित लौटा देने वाली छत्रपति शिवाजी का कार्य ‘अहिंसा’ के जीवन्त रूप हैं । गांधीजी की अहिंसा विभिन्न रूपा थी, विरोधाभास मूलक थी ।

इसमें सत्य का अग्रह था, आत्मा की आवाज थी, किन्तु देश को इस प्रयोग की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । एक ओर चौरा-चौरी सत्याग्रह के मामूली से अहिंसात्मक रूप से गांधी जी ने आन्दोलन वापस लेकर हिंसा के प्रति विरोध प्रकट किया, तो सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में कांग्रेसियों ने इतनी भयंकर हिंसा की कि बिहार का कोई स्टेशन भस्म होने से बचा नहीं, फिर भी वे मौन रहे ।

तीसरी ओर उन्होंने अली कधुओं के साथ मिलकर अफगानिस्तान को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया । शायद इसी लिए गाँधी जी ने कहा, अहिंसा का मार्ग तलवार की धार पर चलने जैसा है, जरा-सी गफलत हुई कि नीचे गिरा । देहधारी के लिए उसका सोलह आने पालन असम्भव है ।’ अहिंसा के शान्ति, हृदय में उत्साह और जीवन में सफलता का पथ प्रशस्त करती है ।

राष्ट्र को सुखी-समृद्ध एवं विकासवान बनाती है । संसार में शांति, भौतिक उन्नति तथा मानवता की महानता को प्रेरित करती है । ‘आत्मवत् सर्व भूतेषु’ का चिन्तन जागृत कर ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का स्वप्न साकार करती है एवं आनन्द के अजस्र स्रोत को प्रवाहमान रखती है ।

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Answered by vedicasaxena01
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अहिंसा विषय पर अनुच्छेद लिखिए

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