Hindi, asked by phultushibls7580, 9 months ago

Ahinsa or yuva par nibandh

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Answered by manojrai6165
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राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोह के अंतर्गत राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग एवं शिक्षा विभाग की ओर से सभी विद्यालयों एवं महाविद्यालयो में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि के अवसर पर 27 मई को ऑनलाइन निबंध प्रतियोगिता की जाएगी। जिसका शीर्षक “युवा एवं अहिंसा” होगा। जिला युवा समन्वयक धर्मेंद्र शर्मा ने बताया कि आधुनिक भारत की रक्षा करने वालेे पुलिसकर्मीयो की करोना वारियर्स के रूप में हौसला अफजाई करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी जाएगी।

अहिंसा पर निबंध

सन् 1947 में भारत ने जो स्वतंत्रता प्राप्त की थी वह अहिंसावाद की ही तो देन है, अहिंसा परमो धर्म यह तो हम सबने सुना है जिसे गौतम बुद्ध से लेकर महावीर स्वामी तक ने अपनाया और इसी मार्ग पे चलने का सबको सन्देश दिया परंतु अहिंसा के मार्ग पर चलना उतना ही मुश्किल था जितना कि अंगारों पर चलना जिसे सच

कर दिखाया हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक लाठी लेकर खड़ाऊं पहन कर वह निकल गए अपने देश को अंग्रेजों से आजाद कराने और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया सिर्फ और सिर्फ अपनी अहिंसा वादी विचारधारा के चलते, महात्मा गाँधी को अहिंसावादी विचारधारा का जनक कहा जाता है अपनी इस

विचारधारा से उन्होंने न सिर्फ अपना देश आज़ाद कराया अपितु अन्य देशो के समक्ष यह उदहारण प्रस्तुत किया की अहिंसा एक ऐसा शांतिपूर्ण हथियार है जिसके मध्यम से हिंसा पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।

भारत में और कई ऐसे विचारक एवं सुधारकर्ता हुए जिहोने अहिंसावादी विचारधारा का प्रचार प्रसार किया जिनमे राजाराम मोहन राय, ईश्वर चंदविद्यासागर, स्वामी विवेका नन्द, जैसे नाम विश्वप्रसिद्ध है। प्राचीन काल से महात्मा बुद्ध को अहिंसा का सबसे बड़ा प्रणेता माना जाता है किस प्रकार उनके प्रभाव में आकरअंगुलिमार जैसा डाकू बौद्ध भिछु बन गया और हिंसा को छोड़ कर अहिंसा का रास्ता अपनाया, महात्मा बुद्ध का समकालीन राजा मगध का सम्राट अशोक था कलिंग के युद्ध में हुए बीभत्स हिंसा को देख कर उसका मन विचलित हो गया और उसने उसी वक़्त सौगंध खायी की वो अहिंसा का मार्ग अपनाएगा तपश्चात उसने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया, हिंसा मनुष्य के भीतर पशुतत्व का संचार करती है इसके विपरीत अहिंसा मनुष्य के भीतर उपस्थित ईश्वरसे उसका साक्षात्कार कराती है।

          युवा पर निबंध

युवा कल की आशा हैं। वे राष्ट्र के सबसे ऊर्जावान भाग में से एक हैं और इसलिए उनसे बहुत उम्मीदें हैं। सही मानसिकता और क्षमता के साथ युवा राष्ट्र के विकास में योगदान कर सकते हैं और इसे आगे बढ़ा सकते हैं।

आज का युवा

मानव सभ्यता सदियों से विकसित हुई है। हर पीढ़ी की अपनी सोच और विचार होते हैं जो समाज के विकास की दिशा में योगदान देते हैं। हालांकि एक तरफ मानव मन और बुद्धि समय गुज़रने के साथ काफी विकसित हो गई है वही लोग भी काफी बेसब्र हो गए हैं। आज का युवा प्रतिभा और क्षमता वाला हैं लेकिन इसे भी आवेगी और बेसब्र कहा जा सकता है। आज का युवा सीखने और नई चीजों को तलाशने के लिए उत्सुक हैं। अब जब वे अपने बड़ों से सलाह ले सकते हैं तो वे हर कदम पर उनके द्वारा निर्देशित नहीं होना चाहते हैं।

युवा पीढ़ी आज विभिन्न चीजों को पूरा करने की जल्दबाजी में है और अंत में परिणाम प्राप्त करने की दिशा में इतना मग्न हो जाता है कि उन्होंने इसका चयन किस लिए किया इसकी ओर भीगणित, वास्तुकला, इंजीनियरिंग और अन्य क्षेत्रों में बहुत प्रगति हुई है पर हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते हैं कि अपराध की दर में भी समय के साथ काफ़ी वृद्धि हुई है। आज दुनिया में पहले से ज्यादा हिंसा हो रही है और इस हिंसा के एक प्रमुख हिस्से के लिए युवा जिम्मेदार हैं।

युवाओं के बीच अपराध को बढ़ावा देने वाले कारक

कई कारक हैं जो युवा पीढ़ी को अपराध करने के लिए उकसाते हैं। यहाँ इनमें से कुछ पर एक नज़र डाली गई है:

1 शिक्षा की कमी

2 बेरोज़गारी

3 पावर प्ले

4 जीवन की ओर पनपता असंतोष

5 बढ़ती प्रतिस्पर्धा

6 निष्कर्ष

यह माता-पिता का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों का पोषण करें और उन्हें अच्छा इंसान बनने में मदद करें। देश के युवाओं के निर्माण में शिक्षक भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी गंभीरता से निभानी चाहिए। ईमानदार और प्रतिबद्ध व्यक्तियों को पोषित करके वे एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं।

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Answered by S300040057
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Answer:

In his valuable study, 'Revolutionaries: Contemporary Essays, E. J. Hobsbawm says, 'that of all the vague words of the late 1960's violence is very nearly the trendiest and the most meaningless'. The root meaning of violence comes from the Latin 'Violentia' meaning vehemence, a passionate and uncontrolled force, the opposite of a calculated exercise of power. Violence is so much a part of modern society that one is easily led to think of it as the dominant characteristic of the times we are living in.

No country seems to have been left untouched by the phenomena of violence. But the Indian sub-continent which is reeling under unprecedented violence appears particularly vulnerable to a variety of violence and terrorism- communal, ideological, theological, ethnic, social, cultural, the list seems endless. No facet of our life has remained untouched by conflict. The sheer vastness of India as a nation serves to attract mercenaries and terrorists of all hues from within and without.

It is also a fact that violence now sweeping across the globe gets more and more pronounced with each passing day as human society takes long stride towards "Development and Progress".

India's message, with all her diversities to the world has been Sarva Dharma Sambhava, a nationality founded on the basis of universal peace. The mind of India has for centuries been able to receive and absorb the new without a violation of its root or direction. But today, as the 21st century unfolds before us, it is not the loss of idealism alone that is disturbing . That loss could have been made up to a great extent by the dynamism of the young.

Whither our youth today? This is a question uppermost in everyone's in everyone's mind. It is deplorable that some of our youth in their ignorance are attracted by the culture of violence. One hears on all sides that the youth is in revolt. Many of us have a good deal of sympathy with this attitude if revolt, the one complaint we have is that it is not sufficiently widespread. The general tendency to regard our ancient civilization as idealistic and the modern one as materialistic is not the expression of revolt but of reaction

After passing through rapid zigzags during the past quarter century, the world youth scene has shifted, as if to a plateau. If the youth does not come forward to help the nation in crisis, history will look askance at them. Injustice thrives on the difference of the people. Youth is active in certain pockets but in a negative sense. They have allowed themselves to be the willing tools in the hands of certain misguided elements who are using them to realise their own ends. Whether in the Punjab, Kashmir, or Sri Lanka, or the Taliban in Afghanistan, it is the same story.

Why do the youth get lured on the wrong path and take to violence?

What is that help create the terrorist personality, the terrorist ethos and the terrorist World view? The youth must ponder over these questions in search of plausible answers for in these answers lies the chances of a misguided youth's journey back to sanity.

Psychologists have from time to time advanced certain theories to explain the working of the working of the terrorist mind. Lawrence Zelic Freedman in a recent anthology entitled 'Perspectives on Terrorism' for instance offers four hypothesis in this regard.

'The Affirmation of self-esteem', particularly where an ego has been deeply hurt and denied identity

Depersonalization i.e. the surrender of one's personality in the service of a group to escape the terrible burden of human responsibility

Terrorism as a" method of establishing intimacy" that is to say, it's a means to enforce recognition and thus establish a subjective relationship with one's victim and

"a belief in the magic of violence" wherein the elements of secrecy, mystery, wonder and sacrament fuse to propel the terrorists toward an unknown territory

To this list may be added terrorism as 'game' as big business link up and political nexus with the underworld and the local mafia and a quick means to make a quick buck above all the lure of sheer (mis) adventure.

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