ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोये।
औरन को सीतल करे, आपहुँ सीतल होए।।
काल करे सो आज कर, आज करे सो अबा
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब।।
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।कबीर के दोहे , पाठ
के दो दोहे के भावार्थ गृ/क में दो बार लिखिए।
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अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि हमें दूसरों के प्रति कठोर वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। हमेशा ऐसी वाणी बोलनी चाहिए जो दूसरों को सुख पहुँचाये और अपने मन में भी शांति लाये।
अर्थ – कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि कभी भी कल पर कोई काम मत छोड़ो, जो कल करना है उसे आज कर लो और जो आज करना है उसे अभी कर लो। किसी को पता नहीं अगर कहीं अगले ही पल में प्रलय आ जाये तो जीवन का अंत हो जायेगा फिर जो करना है वो कब करोगे।
अर्थ – कबीर दास जी कहते हैं कि सिर्फ किताबें पढ़ कर इस संसार में कोई भी सच्चा ज्ञान या परम सत्य को प्राप्त नहीं कर सकता इसके लिए तो प्रेम का ढाई अक्षर ही काफी है।
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