Hindi, asked by memonsahina17, 5 months ago

"ऐसे बिता लॉकडाउन का समय" पर कविता​

Answers

Answered by priyanshi4315
0

Answer:

char PR rehkar be eta mza aha school

Answered by tanishgupta94
2

Explanation:

ब्रह्म मुहूर्त में उठकर

धरती के पाँव छुए ।

हथेलियों को जोड़कर

हाथों के आईने में

प्रभु के दर्शन किए ।

चादर की सिलवटों को

हाथों से सहलाते हुए,

ओढ़ने को तहकर,

सिरहाने समेट दिया ।

अरसे बाद

आज,

प्रकृति के यौवन को

जी भर निहारा ।

झड़ रहे पत्तों को

मन भर दुलारा ।

चंदन बहारों को

तन में उतारा ।

अरसे बाद

आज ,

सूरज की लाली से

नहाया आसमान

देखा ।

नर्म मुलायम घास के

मख़मली बिछौने पर,

चाँदी सा चमकता

ओस का बितान देखा ।

अरसे बाद

आज,

कोयल की कूक देखी

स्वानों की हूक देखी

बंदरों की टोली में

बच्चों की कूद देखी।

दूर आसमान में

डैने पसारे

तिरते परिंदों की

मीलों उड़ान देखी ।

अरसे बाद

आज,

कनेर और गुड़हल के

चटकीले फूल देखे ।

सरपट दौड़ती

गिलहरियोंं के

रूप देखें रंग देखे ।

चोंचों में चोंच डाले,

वेदना की कसक पाले

लुप्त होती गौरैया

की आँखों के

नूर देखे ।

अरसे बाद

आज,

पतीले पर पकती

अदरक की चाय

देखी ।

टिफ़िन और बस्ते की

चिंता से दूर ,

बेफ़िक्र सो रहे

बच्चों की नींद

देखी

अरसे बाद

आज,

जी भर नहाया

कपड़े सुखाए

घर की रसोई के

डिब्बे सजाए ।

अरसे बाद

आज,

बच्चों की थाली में

सब्जी परोसी

मित्र नातेदारों की

कुशल क्षेम पूछी ।

बंद पड़े रिश्तों को

वापस टटोला

सूख रहे पौधों में

जल भी उड़ेला ।

अरसे बाद

आज,

किताबों को पलटा,

कबीर को ढूँढ़ा ।

टीवी स्क्रीन पर

फ़िल्में टटोला ।

“सत्य के प्रयोग” को

हाथों में लेकर,

गांधी के जीवन को

जी भर निचोड़ा ।

अरसे बाद

आज ,

गाड़ियों के

शोरगुल से दूर ,

वीरान सड़कें देखी ।

सांय-सांय हवाएँ देखी

रूकी हुई फ़िज़ाएँ देखी ।

नर से ज़्यादा

नारायण की गढ़ी हुई

रचनाएँ देखी ।

अरसे बाद

आज ,

घर में बिताने को

बेहिसाब पल देखे ।

खुद में सिमटने को

लाजवाब क्षण देखे ।

भागती ज़िंदगी के

रूप देखे रंग देखे ।

अपनों से प्यार के

पुर सुकून संग देखे ।

लॉकडाउन ही सही ,

अरसे बाद

आज,

मम्मी को पापा से

बच्चों को दादा से

भक्त को भगवान से

धर्म को इंसान से ,

सकुचाते,बतियाते

हंसते खिलखिलाते,

प्यार से गले

लगाते देखा ।

लॉकडाउन ही सही ,

अरसे बाद

आज,

दशरथ के राम को

नंद के श्याम को

बाइबिल क़ुरान को

मिलते हुए देखा ।

सर्द पड़े रिश्तों के

बंद दरवाज़ों को

आहिस्ते आहिस्ते

खुलते हुए देखा ।

लॉकडाउन ही सही ,

अरसे बाद

आज,

ज्ञान की तलाश में

भटकते बुद्ध को ,

हिंसा की आग में

झुलसते महावीर को ,

दंड की सूली पर

लटकते मसीह को

एक बार फिर

मुस्कुराते हुए देखा है ।

जीवन की नवराह

दिखाते हुए देखा है

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