ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय कबीरदास कागा काको धन हरै, कोयल काको देत मीठा शब्द सुनाये के , जग अपनो कर लेत। कबीरदास ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग। प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।। कबीरदास प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए। राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए। कबीरदास पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ॥ iska pura arth
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Kabir das ji kahna chate h ki home mitha Bolna chahiye Jo home bhi accha lge aur dusro ko bhi koyal bhi mitha bolo ke sabka man moh leti h .Kabir das ji khte h ki books padne se koi vidwan nhi bnta Jo prem ke dhai akshar padh leta h vhi pandit hota h .
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