अज्ञेय कविता असाध्य वीणा का केंद्रीय भाव लिखिए
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असाध्य वीणा पूर्णतः प्रतीकात्मक कविता है। किरीटी तरु परम सत्य का प्रतीक है। उससे बनाई गई वीणा सत्य की उपलब्धि का साधन मार्ग है और वीणा से निकलने वाला संगीत परमात्मा की अभिव्यक्ति है। यह सत्य प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भावनाओं के अनुसार उपलब्ध होता है।
अज्ञेय कविता असाध्य वीणा का केंद्रीय भाव
परम सत्ता असीम और विराट है जबकि व्यक्ति सत्ता सीमित है। उस परम सत्ता से मिल जाने , उसे जान लेने की आकांक्षा हमेशा व्यक्ति सत्ता में रही है। अज्ञेय के यहाँ इस लंबी कविता में प्रियंवद(व्यक्ति सत्ता) एक लंबी साधना प्रक्रिया से गुजरता है। वह अपने आत्म(I) को उस परम सत्ता(thou) में विलीन कर देता है।
अज्ञेय की कविता अशाध्य वीणा का प्रवर्तक “अज्ञेय” जी ने सभी विधाओं में अपनी प्रगति अदभुत प्रयोगात्मक का परिचय दिया है अज्ञेय स्वभाव से ही विद्रोही भी थे उनकी यह विद्रोही भावना को उनके द्वारा रचे गए साहित्य में भी विविध रूपों में भी प्रतिफलित हुई।
कवि ने असाध्य वीणा में सृजनात्मक रहस्य को समझाने का प्रयत्न कुछ इस प्रकार किया है। जो कि सम्पूर्ण समर्पण के द्वारा श्रेष्ठ संभव है। प्रियबंद के वीणा साधे जाने पर जो संगत अवतरित होता है और उसका प्रभाव व्यापक है। वह एक ही समय अनेक व्यक्तियों के लिए अलग-अलग रूपों मे अभिव्यक्ति देता है। अन्त में साधक यह कहता है – शून्य और मौन के द्वारा वीणा को साधना संभव होता हैं। अज्ञेय के लिए रचना की बङी सार्थकता और उस गरिमा के साथ निहित है जब मौन और शून्य से फूटती है ।
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