Hindi, asked by shiyajaiswal5c5611, 17 hours ago

अकाल , बाढ़ , सुनामी जैसी प्राकृतिक आपादाओं के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? प्रत्येक नागरिक और समाज के योगदान की चर्चा कीजिए ।​

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Answered by JUSHI05
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Answer:

भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहां पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्‍खलन की घटनाएं आम हैं।  भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्‍न प्रबलताओं के भूकंपों का खतरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्‍टेर से अधिक क्षेत्र में बारंबार वाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। खेती योग्‍य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्‍क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में अक्‍सर भूस्‍खलन का खतरा रहता है।

 

भू जलवायु परिस्थितियों के कारण भारत पारंपरिक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशील रहा है। यहां पर बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूकंप तथा भूस्‍खलन की घटनाएं आम हैं।  भारत के लगभग 60% भू भाग में विभिन्‍न प्रबलताओं के भूकंपों का खतरा बना रहता है। 40 मिलियन हेक्‍टेर से अधिक क्षेत्र में बारंबार वाढ़ आती है। कुल 7,516 कि.मी. लंबी तटरेखा में से 5700 कि.मी. में चक्रवात का खतरा बना रहता है। खेती योग्‍य क्षेत्र का लगभग 68% भाग सूखे के प्रति संवेदनशील है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में सुनामी का संकट बना रहता है। देश के कई भागों में पतझड़ी व शुष्‍क पतझड़ी वनों में आग लगना आम बात है। हिमालयी क्षेत्र तथा पूर्वी व पश्चिम घाट के इलाकों में अक्‍सर भूस्‍खलन का खतरा रहता है।

आपदा प्रबंधन सहायता कार्यक्रम के तहत देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुशल प्रबंध के लिए अपेक्षित आंकड़ों व सूचनाओं को उपलब्‍ध कराने के वास्‍ते इसरो द्वारा वांतरिक्ष स्‍थापित आधारभूत संरचनाओं से प्राप्‍त सेवाओं का इष्‍टतम समायोजन किया जाता है। भू-स्थिर उपग्रह (संचार व मौसम विज्ञान), निम्‍न पृथ्‍वी कक्षा के भू-प्रेक्षण उपग्रह, हवाई सर्वेक्षण प्रणाली और भू-आधारित मूल संरचनाएं आपदा प्रबंधन प्रेक्षण प्रणाली के प्रमुख घटक हैं। इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग केन्‍द्र (एन आर एस सी) में स्‍थापित निर्णय सहायता केन्‍द्र में बाढ़, चक्रवात, कृषि सूखा, भूस्‍खलन, भूकंप तथा दावाग्नि जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए कार्यकारी स्‍तर पर निगरानी का काम चल रहा है। निर्णय में सहूलियत के लिए संबंधित व्यक्तियों को लगभग वास्‍तविक काल में वांतरिक्ष प्रणालियों द्वारा तैयार की गई सूचनाएं वितरित की जाती हैं। उपग्रह चित्रों के प्रयोग द्वारा तैयार अधिमूल्‍य उत्‍पादों द्वारा आपदा से निपटने की तैयारी, पूर्व चेतावनी, प्रतिक्रिया, राहत, बेहतर पुर्नवास तथा रोकथाम जैसे आपदा प्रबंधन के सभी चरणों के लिए अपेक्षित सूचनाऍं पाने में मदद मिलती है।

विश्‍वभर में सर्वाधिक बाढ़ के खतरों का सामना कर रहे देशों में भारत का भी नाम आता है। भारत की लगभग सभी नदी बेसिनों में बाढ़ आती है। देश के 35 राज्‍यों व केन्‍द्र शासित प्रदेशों में से 22 में बाढ़ आती है। इस कारण 40 मिलियन हेक्‍टेयर इलाके अर्थात देश के भौगोलिक क्षेत्रफल के लगभग आठवें भाग में बाढ़ का खतरा बना रहता है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्र तथा  बुनियादी सुविधाओं को पहुँची क्षति के आकलन द्वारा निर्णयकों को राहत कार्यों की योजना बनाने में मदद मिलती है।  उपग्रह आधारित चित्र विशाल क्षेत्र दर्शाते हैं। अतः, वे बाढ़ग्रस्‍त इलाकों के विस्‍तार के मूल्‍यांकन में सर्वश्रेष्‍ठ उपादान सिद्ध होते हैं। जैसे ही बाढ़ की सूचना प्राप्‍त होती है, तुरंत सर्वप्रथम उपलब्‍ध उपग्रह को बाढ़ग्रस्‍त इलाकों के सीमांकन के लिए नियोजित किया जाता है। इसके लिए प्रकाशीय व सूक्ष्‍मतरंग, दोनों प्रकार के उपग्रह आंकड़ों का उपयोग किया जाता है। बाढ़ प्रभावित गांवों व परिवहन नेटवर्क के अलावा बाढ़ में डूबे व बाढ़ से अछूते इलाकों को विभिन्‍न रंगों से दर्शाते बाढ़ मानचित्र तैयार कर केन्‍द्र/राज्‍य की संबंधित एजेंसियों को वितरित किए जाते हैं। विभिन्‍न बाढ़ग्रस्‍त इलाकों के ऐतिहासिक आंकड़ों का प्रयोग कर बाढ़ के खतरे वाले इलाकों का सीमांकन किया जा रहा है। असम व बिहार राज्‍य में जिले के स्‍तर पर इस प्रकार के खतरों को दर्शाने वाला एटलस तैयार कर लिया गया है। इसके अलावा हवाई सर्वेक्षणों, मौसम के पूर्वानुमान तथा केन्‍द्रीय जल आयोग द्वारा मौके पर ली गई सूचनाओं को संयोजित कर तैयार की गई नदी रूपाकृति द्वारा बाढ़ का पूर्वानुमान लगने की पद्धति विकसित कर कार्यकारी बनाई जा रही है।

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