अकाल: एक भिषण समस्या निबंध १००० शब्द में
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दुर्भिक्ष या अकाल प्राय : अभाव की स्थिति को कहा जाता है | सामन्य रूप से मनुष्यों के लिए खाने – पीने की वस्तुओ का अभाव तथा पशुओ के लिए चारे –पानी के अभाव को अकाल या दुर्भिक्ष कहा जाता है | दुर्भिक्ष के मूल रूप से दो कारण हुआ करते है – एक बनावटी तथा दूसरा प्राकृतिक | बनावटी अकाल प्राय : सरकार उत्पादकों व व्यापारियों द्वारा पैदा कर दिए जाते है, इसके अतिरिक्त जब अन्न , जल व चारे आदि का अभाव प्राकृतिक कारणों से होता है तो वह प्राकृतिक अकाल कहलाता है .
गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस के उत्तरकांड की उक्त चैपाई से अकाल का अर्थ स्पष्ट है। अर्थात वह काल जिसमें खाद्यान्न का अभाव हो जाए और अन्न बिना लोग मरने लगें, अकाल कहलाता है। लेकिन, परिस्थितियां बदलने से अकाल की परिभाषा भी कुछ बदली है, पर भाव वही है। वर्तमान मंे क्रेता की क्रयशक्ति घट जाने को अकाल कहते हैं। या, दूसरे शब्दों में अन्न का भाव इतना बढ़ जाए कि आम जनता पर्याप्त मात्रा में अन्न खरीद सके, तो इसे ही अकाल कहा जाता है।
अकाल के कई कारण हैं। इन कारणों को मुख्यतः दो भागों मे विभक्त किया जा सकता है- प्राकृतिक एवं कृत्रिम। प्राकृतिक कारणों में अतिवृष्टि, अनावृष्टि एवं फसलों पर कीड़ों पर प्रकोप मुख्य है। भारतीय कृषि मुख्य रूप से वर्षा पर आश्रित है। यहां का मौसम किसानों के साथ आंखमिचैली खेलना है। कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि। अतिवृष्टि के कारण फसल जहां सड़ एवं गल जाती है, वहीं अनावृष्टि के कारण फसलें सूख जाती हैं। लहलहाती फसलें कभी-कभी ओला, पाला, टिड्ढी एवं अन्य कीड़ों के प्रकोप से बर्बाद हो जाती हैं। इन कारणों से खाद्यान्न के उत्पादन में भारी कमी होने के फलस्वरूप अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। आम नागरिकों की क्रयशक्ति का हास, सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दोषपूर्ण व्यवस्था एवं व्यापारियों में मुनाफाखोरी की प्रवृति आदि अकाल के कृत्रिम कारण हैं। बड़े-बड़े मुनाफाखोर व्यापारी लखपति से करोड़पति बनने के चक्कर में अपने गोदामों मे अनाज को छिपाकर कृत्रिम अकाल पैदा कर देते हैं। इस घृणित कार्य में भ्रष्ट राजनेताओं एवं पदाधिकारियों की भी मिलीभगत होती है।
अकाल के जो भी कारण हों, यह प्राणियों के लिए कष्ट का कारण ही होता है। पुराने समय में जब यातायात के इतने साधन उपलब्ध नहीं थे, तब अकाल मरणकाल होता था। क्योंकि अकाल वाले क्षेत्र मंे बाहर से अन्न पहुंचाना असम्भव था। लोग शाक-सब्जी, पेड़ की पतियां खाकर प्राणों की रक्षा करते थे। इतने पर भी जब भूख की ज्वाला बर्दाशत नहीं होती थी, तब लोग हत्या, चोरी, डकैती आदि घृणित कार्यो पर उतारू हो जाते थे। जब सूखे के कारण अकाल पड़ता था, तब यह और भयावह होा जाता था। अन्न से पहले लोग पानी के अभाव में छटपटाने लगते थे। जानवरों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती थी। चारा और पानी के अभाव में ये कीड़े-मकोड़ों की तरह मरने लगते थे। लेकिन, वर्तमान में स्थिति बदल गई है। यातायात के साधनों के विकास से अब अकाल वाले राज्यों में दूसरे राज्यों से ही नहीं, विदेशों से भी अन्न मंगवाकर अन्नाभाव दूर किया जाता है। सरकार इन क्षेत्रों में सस्ती दरों पर अनाज बेचती है। स्वंयसेवी संगठनों द्वारा मुफ्त में भोजन, वस्त्र तथा दवाइयां वितरित की जाती हैं। मजदरों को काम दिलवाने के लिए उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरकार द्वारा विकास-कार्य प्रारम्भ किया जाता है। ’काम के बदले अनाज’ जैसी योजनाएं चलाई जाती हैं।
अकाल की समस्या के स्थायी निदान के लिए सरकार को प्रयत्नशील रहना चाहिए। सूखे से बचाव के लिए नहरों का जाल बिछा देना चाहिए, ताकि हर खेत को पानी मिल सके। इसके अलावा किसानों को ट्यूबवेल लगवाने, पम्पसेट खरीदने एवं उर्वरक, बीज, कीटनाशक दवाइयां आदि खरीदने हेतु सरकार की ओर से आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए। कृत्रिम अन्नाभाव उत्पन्न करने वाले मुनाफाखोर व्यापारियों एवं उनके संरक्षक भ्रष्ट पदाधिकारियों के विरूद्व सरकार को सख्ती से पेश आना चाहिए।
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