अकाल में सारस कविता का टिपणी लिखिए |
Answers
answer:
(अकाल में सारस)
' अकाल में सारस ' केदारनाथ सिंह जी की कविताओं का काव्य-संग्रह है । इसकी कविताएँ सन् 1983 से 87 के बीच लिखी गयी हैं । केदारनाथ सिंह जी की कविताओं में एक अलग ही आकर्षण होता है, आसपास की साधारण सी लगने वाली चीजें उनकी कविता के विषय होते हैं और वो अपनी कविता में बहुत ही खुबसूरती से इन चीजों का उपयोग करते हैं। उनके कविताओं के कहने का लहजा बिल्कुल बोलचाल के जैसा होता है, ऐसा कहीं से नहीं लगता की वो कविता कह रहे हैं । 'अकाल में सारस ' कविता में सुदूर प्रदेशों से सारस पानी की तलाश में आते हैं । एक बुढ़िया अपने आंगन में एक जलभरा कटोरा रखती है । सारस उस कटोरे को देखते तक नहीं और उड़ जाते हैं । एक पूरा दृश्य एक फ़िल्म की पटकथा सी गतिविधियों की बारीक से बारीक घटना दर्ज है । केदार जी वर्णन नहीं चित्रण करते हैं । दरअसल यह कविता भौतिक अर्थ में अकाल पर होते हुए भी अर्थ के अतिक्रमण की कविता है और वह शहर को दया या घृणा का पात्र मानने की टिप्पणी के साथ खत्म होती है । शहर में जीवन तत्त्व पानी की उपलब्धता के बारे में सारसों के अनुमान को वे यूं बयां करते हैं..
अकाल में सारस
तीन बजे दिन में
आ गए वे
जब वे आए
किसी ने सोचा तक नहीं था
कि ऐसे भी आ सकते हैं सारस
एक के बाद एक
वे झुंड के झुंड
धीरे-धीरे आए
धीरे-धीरे वे छा गए
सारे आसमान में
धीरे-धीरे उनके क्रेंकार से भर गया
सारा का सारा शहर
वे देर तक करते रहे
शहर की परिक्रमा
देर तक छतों और बारजों पर
उनके डैनों से झरती रही
धान की सूखी
पत्तियों की गंध
अचानक
एक बुढ़िया ने उन्हें देखा
जरूर-जरूर
वे पानी की तलाश में आए हैं
उसने सोचा
वह रसोई में गई
और आँगन के बीचोबीच
लाकर रख दिया
एक जल-भरा कटोरा
लेकिन सारस
उसी तरह करते रहे
शहर की परिक्रमा
न तो उन्होंने बुढ़िया को देखा
न जल भर कटोरे को
सारसों को तो पता तक नहीं था
कि नीचे रहते हैं लोग
जो उन्हें कहते हैं सारस
पानी को खोजते
दूर-देसावर से आए थे वे
सो, उन्होंने गर्दन उठाई
एक बार पीछे की ओर देखा
न जाने क्या था उस निगाह में
दया कि घृणा
पर एक बार जाते-जाते
उन्होंने शहर की ओर मुड़कर
देखा जरूर
फिर हवा में
अपने डैने पीटते हुए
दूरियों में धीरे-धीरे
खो गए सारस
– केदारनाथ सिंह
please make mea brainlist please
Answer:
अकाल में सारस ‘ केदारनाथ सिंह जी की कविताओं का काव्य-संग्रह है । इसकी कविताएँ सन् 1983 से 87 के बीच लिखी गयी हैं । केदारनाथ सिंह जी की कविताओं में एक अलग ही आकर्षण होता है, आसपास की साधारण सी लगने वाली चीजें उनकी कविता के विषय होते हैं और वो अपनी कविता में बहुत ही खुबसूरती से इन चीजों का उपयोग करते हैं। उनके कविताओं के कहने का लहजा बिल्कुल बोलचाल के जैसा होता है, ऐसा कहीं से नहीं लगता की वो कविता कह रहे हैं । ‘अकाल में सारस ‘ कविता में सुदूर प्रदेशों से सारस पानी की तलाश में आते हैं । एक बुढ़िया अपने आंगन में एक जलभरा कटोरा रखती है । सारस उस कटोरे को देखते तक नहीं और उड़ जाते हैं । एक पूरा दृश्य एक फ़िल्म की पटकथा सी गतिविधियों की बारीक से बारीक घटना दर्ज है । केदार जी वर्णन नहीं चित्रण करते हैं । दरअसल यह कविता भौतिक अर्थ में अकाल पर होते हुए भी अर्थ के अतिक्रमण की कविता है और वह शहर को दया या घृणा का पात्र मानने की टिप्पणी के साथ खत्म होती है । शहर में जीवन तत्त्व पानी की उपलब्धता के बारे में सारसों के अनुमान को वे यूं बयां करते हैं…
Explanation: