अकबरी लोटा कहानी में महु ावरे चन ु कर उनका प्रर्ोग करते हु ए वाक्र् ललखिए I
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(i) अब तक बिलवासी जी को वे अपनी आँखो से खा चुके होते।
(ii) कुछ ऐसी गढ़न उस लोटे की थी कि उसका बाप डमरू, माँ चिलम रही हो।
(iii) ढ़ाई सौ रूपए तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते हैं।
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