अकबर ने कब शासन संभाला उसके व्यक्तित्व की क्या विशेषताएं थी?
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जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर (उर्दू: جلال الدین محمد اکبر) (१५ अक्तूबर, १५४२-२७ अक्तूबर, १६०५)[3] तैमूरी वंशावली के मुगल वंश का तीसरा शासक था।[4] अकबर को अकबर-ऐ-आज़म (अर्थात अकबर महान), शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह के नाम से भी जाना जाता है।[1][2][5] सम्राट अकबर मुगल साम्राज्य के संस्थापक जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर का पौत्र और नासिरुद्दीन हुमायूं एवं हमीदा बानो का पुत्र था। बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।[3] अकबर के शासन के अंत तक १६०५ में मुगल साम्राज्य में उत्तरी और मध्य भारत के अधिकाश भाग सम्मिलित थे और उस समय के सर्वाधिक शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक था।[6] बादशाहों में अकबर ही एक ऐसा बादशाह था, जिसे हिन्दू मुस्लिम दोनों वर्गों का बराबर प्यार और सम्मान मिला। उसने हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच की दूरियां कम करने के लिए दीन-ए-इलाही नामक धर्म की स्थापना की।[3] उसका दरबार सबके लिए हर समय खुला रहता था। उसके दरबार में मुस्लिम सरदारों की अपेक्षा हिन्दू सरदार अधिक थे। अकबर ने हिन्दुओं पर लगने वाला जज़िया ही नहीं समाप्त किया, बल्कि ऐसे अनेक कार्य किए जिनके कारण हिन्दू और मुस्लिम दोनों उसके प्रशंसक बने।[7] अकबर मात्र तेरह वर्ष की आयु में अपने पिता नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायुं की मृत्यु उपरांत दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा था।[8] अपने शासन काल में उसने शक्तिशाली पश्तून वंशज शेरशाह सूरी के आक्रमण बिल्कुल बंद करवा दिये थे, साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था।[9][10] अपने साम्राज्य के गठन करने और उत्तरी और मध्य भारत के सभी क्षेत्रों को एकछत्र अधिकार में लाने में अकबर को दो दशक लग गये थे। उसका प्रभाव लगभग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर था और इस क्षेत्र के एक बड़े भूभाग पर सम्राट के रूप में उसने शासन किया। सम्राट के रूप में अकबर ने शक्तिशाली और बहुल हिन्दू राजपूत राजाओं से राजनयिक संबंध बनाये और उनके यहाँ विवाह भी किये।[9][11]
जलाल-उद्दीन मोहम्मद अकबर
جلال الدین محمد اکبر
अकबर
अकबर
शासनावधि
२७ जनवरी, १५५६ - २९ अक्तूबर १६०५[1][2] १५५६–१६०५
राज्याभिषेक
१४ फरवरी १५५६
पूर्ववर्ती
हेमू
उत्तरवर्ती
जहाँगीर
जन्म
१५ अक्तूबर १५४२
उमरकोट किला, सिंध
निधन
२७ अक्टूबर १६०५
फतेहपुर सीकरी, आगरा
समाधि
बिहिस्ताबाद सिकन्दरा, आगरा
जीवनसंगी
रुक़ाइय्याबेगम बेगम सहिबा, सलीमा सुल्तान बेगम सहिबा और मारियाम उज़-ज़मानि बेगम सहिबा
घराना
तिमुर मुग़ल
पिता
हुमायूँ
माता
नवाब हमीदा बानो बेगम साहिबा
अकबर के शासन का प्रभाव देश की कला एवं संस्कृति पर भी पड़ा।[12] उसने चित्रकारी आदि ललित कलाओं में काफ़ी रुचि दिखाई और उसके प्रासाद की भित्तियाँ सुंदर चित्रों व नमूनों से भरी पड़ी थीं। मुगल चित्रकारी का विकास करने के साथ साथ ही उसने यूरोपीय शैली का भी स्वागत किया। उसे साहित्य में भी रुचि थी और उसने अनेक संस्कृत पाण्डुलिपियों व ग्रन्थों का फारसी में तथा फारसी ग्रन्थों का संस्कृत व हिन्दी में अनुवाद भी करवाया था। अनेक फारसी संस्कृति से जुड़े चित्रों को अपने दरबार की दीवारों पर भी बनवाया।[12] अपने आरम्भिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी। उसने हिन्दू राजपूत राजकुमारियों से वैवाहिक संबंध भी बनाये।[13][14][15] अकबर के दरबार में अनेक हिन्दू दरबारी, सैन्य अधिकारी व सामन्त थे। उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरम्भ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था।[16] उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया।[9][17]
इतने बड़े सम्राट की मृत्यु होने पर उसकी अन्त्येष्टि बिना किसी संस्कार के जल्दी ही कर दी गयी। परम्परानुसार दुर्ग में दीवार तोड़कर एक मार्ग बनवाया गया तथा उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया। अकबर तीसरा और सबसे कायर मुग़ल शासक था। Please mark as brainliest.
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मध्य जीवन में देखा गया अकबर, मध्यम कद का व्यक्ति था, शायद ... उसकी नसों में रक्त का पता टार्टार की संकीर्ण आंखों की विशेषता से लगाया गया था, ... अकबर अपने आहार में बेहद उदारवादी था, लेकिन एक पर्याप्त भोजन में ... उसके चरित्र के उस पक्ष ने पीटर द ग्रेट के साथ तुलना करने का सुझाव दिया।