Hindi, asked by sinhaharshita843, 3 months ago

अखबार में नाम कहानी का सारांश लिखिए​

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Answered by dhruvigamit08
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यशपाल की कहानी : ‘अखबार में नाम’!

"साहित्य के पन्नो से", कहानी

यशपाल की कहानी : ‘अखबार में नाम’!

मानबी कटोचDecember 3, 2016

’साहित्य के पन्नो से’ में हम, भारत के हिंदी तथा उर्दू के महान लेखको की रचनाओं को आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगे।.

यशपाल का नाम आधुनिक हिन्दी साहित्य के कथाकारों में प्रमुख है। ये एक साथ ही क्रांतिकारी एवं लेखक दोनों रूपों में जाने जाते है। प्रेमचंद के बाद हिन्दी के सुप्रसिद्ध प्रगतिशील कथाकारों में इनका नाम लिया जाता है। आज ‘साहित्य के पन्नो से’ में पढ़िए इन्ही की लिखी एक कहानी।

यशपाल का जन्म 3 दिसंबर, 1903 में पंजाब के फिरोज़पुर छावनी में हुआ था। इनके पिता का नाम हीरालाल था जो एक साधारण कारोबारी व्यक्ति थे। इनकी माता का नाम प्रेमदेवी था।

यशपाल की प्रारंभिक शिक्षा काँगड़ा में हुई। तत्पश्चात उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए. किया। तभी उनका परिचय सरदार भगत सिंह और सुखदेव से हुआ। उनके संपर्क से वे क्रन्तिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे। धीरे-धीरे उनका झुकाव मार्क्सवादी चिंतन की ओर होता चला गया। अमर शहीद भगतसिंह आदि के साथ मिलकर इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया।परिणामस्वरुप इन्हें एक लम्बे समय तक फरार रहना पडा और फिर कई साल जेल में भी गुज़ारने पड़े।

इसके बाद इन्होने साहित्य को अपना जीवन बना लिया। जो काम कभी इन्होने बंदूक के माध्यम से किया था, अब वही जनजागरण का काम इन्होने बुलेटिन के माध्यम से करना शुरू कर दिया। यशपाल को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।

यशपाल के लेखन की प्रमुख विधा उपन्यास है, लेकिन अपने लेखन की शुरूआत उन्होने कहानियों से ही की। उनकी कहानियाँ अपने समय की राजनीति से उस रूप में आक्रांत नहीं हैं, जैसे उनके उपन्यास। उनके कहानी-संग्रहों में पिंजरे की उड़ान, ज्ञानदान, भस्मावृत्त चिनगारी, फूलों का कुर्ता, धर्मयुद्ध, तुमने क्यों कहा था मैं सुन्दर हूँ और उत्तमी की माँ प्रमुख हैं।

इसी कहानी संग्रह से चुनकर आज हम आपके लिए लाये है, आज की कहानी ‘अखबार में नाम’!

Answered by tripathiakshita48
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अखबार में नाम

जून का महीना था लड़कों की लाइन ने मैदान का एक चक्कर पूरा कर दूसरा आरम्भ किया था कि अनन्तराम गिर पड़ा। स्कूल-भर में अनन्तराम के बेहोश हो जाने की खबर फैल गयी। स्कूल में सब उसे जान गये। यह घटना और काण्ड हो जाने के बाद गुरदास सोचता रहा, ‘अगर अनन्तराम की जगह वही बेहोश होकर गिर पड़ता, वैसे ही उसे चोट आ जाती तो कितना अच्छा होता?’ आह भरकर उसने सोचा, ‘सब लोग उसे जान जाते और उसकी खातिर होती।’

गणित में नाम जब कभी लिया जाता तो बनवारी, खन्ना, खलीक और महेश का ही, गुरदास बेचारे का कभी नहीं। ऐसी ही हालत व्याकरण और अंग्रेजी की क्लास में भी होती। कुछ लड़के पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज होने की प्रशंसा पाते और कोई डांट गुरदास बेचारा दोनों तरफ से बीच में रह जाता।

पिता कभी कह देते कि उनका पुत्र ही उनका और अपना नाम कर जायेगा। ख्याति और नाम की कमाई के लिए इस प्रकार निरन्तर दी जाती रहने वाली उत्तेजनाओं के बावजूद गुरदास श्रेणी और समाज में अपने-आप को किसी अनाज की बोरी के करोड़ों एक ही से दानों में से एक साधारण दाने से अधिक अनुभव न कर पाता था।

आयु बढ़ने के साथ-साथ गुरदास की नाम कमाने की महत्वाकांक्षा उग्र होती जा रही थी गुरदास के गरीब मुहल्ले  में दुलारे बीमारी का पहला शिकार हुआ। गुरदास ने पढ़ा कि बीमारी का इलाज देर से आरम्भ होने के कारण दुलारे की अवस्था चिन्ताजनक है।

गुरदास को हस्पताल पहुंचकर उसे समझ में आया कि वह बाजार में एक मोटर के धक्के से गिर पड़ा था। मोटर के मालिक एक शरीफ वकील साहब थे।  मोटर के मालिक वकील साहब उसका हाल-चाल पूछने आ गये।

वकील साहब एक स्टूल खींचकर गुरदास के लोहे के पलंग के पास बैठ गये और समझाने लगे, ‘देखो भाई, ड्राइवर बेचारे की कोई गलती नहीं थी।गुरदास वकील साहब की बात सुन रहा था पर ध्यान उसका वकील साहब के हाथ में गोल-मोल लिपटे अखबार की ओर था। रह न सका तो पूछ बैठा, ‘वकील साहब, अखबार में हमारा नाम छपा है? हमारा नाम गुरदास है। मकान नाहर मुहल्ले में है।’

वकील साहब की सहानुभूति में झुकी आंखें सहसा पूरी खुल गयीं, ‘अखबार में नाम?’ उन्होंने पूछा, छपवा दें?’

गुरदास को लंगड़ाते हुए ही कचहरी जाना पड़ा। वकील साहब की टेढ़ी जिरह का उत्तर देना सहज न था, आरम्भ में ही उन्होंने पूछा- ‘तुम अखबार में नाम छपवाना चाहते थे?’

‘जी हाँ।’ गुरदास को स्वीकार करना पड़ा।

गुरदास ने अखबार से अपना मुँह ढाँप लिया।

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