अलंकार की परिभाषा एवं भेद लिखिए
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परिभाषा: अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है- 'आभूषण', जिस प्रकार स्त्री की शोभा आभूषण से उसी प्रकार काव्य की शोभा अलंकार से होती है अर्थात जो किसी वस्तु को अलंकृत करे वह अलंकार कहलाता है। ... अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है- अलम + कार, यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ' आभूषण।
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अलंकार- मानव समाज सौन्दर्योपासक है ,उसकी इसी प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म दिया है। शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए जिस प्रकार मनुष्य ने भिन्न -भिन्न प्रकार के आभूषण का प्रयोग किया ,उसी प्रकार उसने भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारों का सृजन किया। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है।
अलंकार एवं उसके भेद –
मुख्य रूप से अलंकार के दो भेद होते है |
शब्दालंकार
जब काव्य में शब्दों के कारण सौंदर्य उत्पन्न होता है, तब वहाँ पर शब्दालंकार होता है |
जैसे- रघुपति राघव राजा राम
पतित-पावन सीता राम ||
अर्थालंकर
जब काव्य में अर्थों के माध्यम से चमत्कार , सौंदर्य और चारुता उत्पन्न हो तब वहाँ पर अर्थालंकर होता है |
जैसे – पीपर पात सरिस मन डोला |
शब्दालंकार
के तीन भेद
अनुप्रास - जब काव्य में एक ही वर्ण (व्यंजन ) की आवृति बार-बार हो तब वहाँ पर अनुप्रास अलंकार होता है
जैसे –
चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में |
सुरभित सुंदर सुखद सुमन तुम पर खिलते हैं |
यमक - जब काव्य में एक ही शब्द दो बार आता हो और दोनों बार अर्थ अलग –अलग हो तब वहाँ पर यमक अलंकार होता है |
जैसे – काली घटा का घमंड घटा नभ तारक मण्डल वृंद खिले |
कनक – कनक ते सौ गुनी ,मादकता अधिकाय |
श्लेष – जब काव्य में कोई शब्द एक ही बार आता है ,परंतु उसके एक से अधिक अर्थ हो तब वहाँ श्लेष अलंकार होता है |
जैसे –
रहिमन पानी रखिए ,बिन पानी सब सुन
पानी गए न उबरे मोती मानुष चून ||
मंगन को देखि पट देत बार – बार है |
अर्थालंकर
उपमा – जब किसी वस्तु या व्यक्ति की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु या व्यक्ति से की जाती है तब वहाँ उपमा अलंकार होता है |
जैसे- उसका मुख चंद्रमा के समान सुंदर है |
गंगा तेरा नीर अमृत- सम उत्तम है |
रूपक - जब गुण की अत्यधिक समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोप कर दिया जाता है तब रुपक अलंकार होता है |
जैसे – चरण कमल बंदौ हरि राइ |
हस्ती चढिए ज्ञान कौ , सहज दुलीचा डारी |
उत्प्रेक्षा - जहां उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाय वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है |इस अलंकार में मानो , जानो , जानहुँ ,ज्यों ,जनु इत्यादि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है |
जैसे- उस काल मारे क्रोध के सोता हुया सागर जागा
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुया सागर जगा |
पुलक प्रकट करती है धरती हरित तृणों के नोके से
मानो झूम रहें हो तरु भी ,मंद पवन के झोंको से |
अतिशयोक्ति - जब किसी बात को इतना बढ़ा चढ़ा कर कहा जाए कि जिसका होना सामान्य स्थितियों में संभव न हो , वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है |
जैसे – आगे नदिया पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार
राणा से सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार |
हनुमान कि पुंछ में लग न पायी आग |
सारी लंका जल गयी , गए निशाचर भाग ||
मानवीकरण – जब जड़ वस्तु या प्रकृति को जीवंत मानव की तरह कार्य करते हुये दिखाया जाता है तब मानवीकरण अलंकार होता हैं |
जैसे-
हैं किनारे कई पत्थर पी रहें चुपचाप पानी |
है वसुंधरा विखेर देती , मोती सबके सोने पर |
रवि बटोर लेता है उनको सदा सवेरा होने पर ||