अलंकार को परिभाषित करते हुए अलंकारों का वर्गीकरण उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
Answers
काव्यों की सुंदरता बढ़ाने वाले यंत्रों को ही अलंकार कहते हैं।ये यह अलंकार भाषा की की सुंदरता को बढ़ाते हैं.
1. अनुप्रास अलंकार
जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। जैसे :
चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में ।
2.यमक अलंकार
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है। दो बार प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ अलग हो सकता है । जैसे:
काली घटा का घमंड घटा।
3. श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार ऊपर दिये गए दोनों अलंकारों से भिन्न है । श्लेष अलंकार में एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ होते हैं। जैसे:
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।
4.उपमा अलंकार
उप का अर्थ है समीप से और पा का अर्थ है तोलना या देखना । अतः जब दो भिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है । जैसे:कर कमल-सा कोमल है ।
5. रूपक अलंकार
जब उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद दिखाया जाए तब यह रूपक अलंकार कहलाता है। जैसे- मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों.
6.उत्प्रेक्षा अलंकार
जहाँ उपमेय में उपमान के होने की संभावना का वर्णन हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु,मेरे जानते,मनहु,मानो, निश्चय, ईव आदि आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे:मुख मानो चन्द्रमा है।
7. अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे :आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार।
8. मानवीकरण अलंकार
जब प्राकृतिक चीज़ों में मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन हो तब वहां मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे :फूल हँसे कलियाँ मुस्कुराई।
Answer:
अलंकार
अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – अलम + कार। यहाँ पर अलम का अर्थ होता है ‘ आभूषण।’ मानव समाज बहुत ही सौन्दर्योपासक है उसकी प्रवर्ती के कारण ही अलंकारों को जन्म दिया गया है। जिस तरह से एक नारी अपनी सुन्दरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों को प्रयोग में लाती हैं उसी प्रकार भाषा को सुन्दर बनाने के लिए अलंकारों का प्रयोग किया जाता है। अथार्त जो शब्द काव्य की शोभा को बढ़ाते हैं उसे अलंकार कहते हैं।
साहित्यों में रस और शब्द की शक्तियों की प्रासंगिकता गद्य और पद्य दोनों में ही की जाती है परंतु कविता में इन दोनों के अलावा भी अलंकार, छंद और बिंब का प्रयोग किया जाता है जो कविता में विशिष्टता लाने का काम करता है हालाँकि पाठ्यक्रम में कविताओं को अपना आधार मानकर ही अलंकार, छंद, बिंब और रस की विवेचना की जाती है।
उदाहरण :- ‘भूषण बिना न सोहई – कविता, बनिता मित्त।’
अलंकारों का वर्गीकरण :
कोई भी कवी कथनीय वास्तु को अच्छी से अच्छी अभिव्यक्ति देने की सोच से अलंकारों को प्रयुक्त करता है जिनके द्वारा वह अपने भावों को उत्कर्ष प्रदान करता है या फिर रूप, गुण या क्रिया का अधिक अनुभव कराता है। कवी के मन का ओज ही अलंकारों का असली कारण होता है। जो व्यक्ति रुचिभेद आएँबर या चमत्कारप्रिय होता है वह व्यक्ति अपने शब्दों में शब्दालंकार का प्रयोग करता है लेकिन जो व्यक्ति भावुक होता है वह व्यक्ति अर्थालंकार का प्रयोग करता है।
अलंकार के भेद
शब्दालंकार
अर्थालंकार
उभयालंकार
1. शब्दालंकार
शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – शब्द + अलंकार। शब्द के दो रूप होते हैं – ध्वनी और अर्थ। ध्वनि के आधार पर शब्दालंकार की सृष्टी होती है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से उस शब्द का अस्तित्व न रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
अर्थार्त जिस अलंकार में शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।
शब्दालंकार के भेद :-
अनुप्रास अलंकार
यमक अलंकार
पुनरुक्ति अलंकार
विप्सा अलंकार
वक्रोक्ति अलंकार
शलेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार क्या होता है :-
अनुप्रास शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – अनु + प्रास | यहाँ पर अनु का अर्थ है- बार-बार और प्रास का अर्थ होता है – वर्ण। जब किसी वर्ण की बार – बार आवर्ती हो तब जो चमत्कार होता है उसे अनुप्रास अलंकार कहते है।
जैसे :- जन रंजन मंजन दनुज मनुज रूप सुर भूप।
विश्व बदर इव धृत उदर जोवत सोवत सूप।।
अनुप्रास के भेद :-
छेकानुप्रास अलंकार
वृत्यानुप्रास अलंकार
लाटानुप्रास अलंकार
अन्त्यानुप्रास अलंकार
श्रुत्यानुप्रास अलंकार
1. छेकानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर स्वरुप और क्रम से अनेक व्यंजनों की आवृति एक बार हो वहाँ छेकानुप्रास अलंकार होता है।
जैसे :- रीझि रीझि रहसि रहसि हँसि हँसि उठै।
साँसैं भरि आँसू भरि कहत दई दई।।
2. वृत्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जब एक व्यंजन की आवर्ती अनेक बार हो वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार कहते हैं।
जैसे :- “चामर-सी, चन्दन – सी, चंद – सी,
चाँदनी चमेली चारु चंद-सुघर है।”
3. लाटानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ शब्द और वाक्यों की आवर्ती हो तथा प्रत्येक जगह पर अर्थ भी वही पर अन्वय करने पर भिन्नता आ जाये वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है। अथार्त जब एक शब्द या वाक्य खंड की आवर्ती उसी अर्थ में हो वहाँ लाटानुप्रास अलंकार होता है।
जैसे :- तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी के पात्र समर्थ,
तेगबहादुर, हाँ, वे ही थे गुरु-पदवी थी जिनके अर्थ।
4. अन्त्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ अंत में तुक मिलती हो वहाँ पर अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है।
जैसे :- “लगा दी किसने आकर आग।
कहाँ था तू संशय के नाग?”
5. श्रुत्यानुप्रास अलंकार क्या होता है :- जहाँ पर कानों को मधुर लगने वाले वर्णों की आवर्ती हो उसे श्रुत्यानुप्रास अलंकार कहते है।
जैसे :- “दिनान्त था, थे दीननाथ डुबते,
सधेनु आते गृह ग्वाल बाल थे।”
2. यमक अलंकार क्या होता है :-
यमक शब्द का अर्थ होता है – दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आये वहाँ पर यमक अलंकार होता है।
जैसे :- कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराए नर, वा पाये बौराये।
3. पुनरुक्ति अलंकार क्या है :-
पुनरुक्ति अलंकार दो शब्दों से मिलकर बना है – पुन: +उक्ति। जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है।
4. विप्सा अलंकार क्या है :-
जब आदर, हर्ष, शोक, विस्मयादिबोधक आदि भावों को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति को ही विप्सा अलंकार कहते है।
जैसे :- मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।
5. वक्रोक्ति अलंकार क्या है :-
जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है।
वक्रोक्ति अलंकार के भेद :-
काकु वक्रोक्ति अलंकार
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
1. काकु वक्रोक्ति अलंकार क्या है :- जब वक्ता के द्वारा बोले गये शब्दों का उसकी कंठ ध्वनी के कारण श्रोता कुछ और अर्थ निकाले वहाँ पर काकु वक्रोक्ति अलंकार होता है।
जैसे :- मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू।
2. श्लेष वक्रोक्ति अलंकार क्या है :- जहाँ पर श्लेष की वजह से वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का अलग अर्थ निकाला जाये वहाँ श्लेष वक्रोक्ति अलंकार होता है।
जैसे :- को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।
6. श्लेष अलंकार क्या होता है :-
जहाँ पर कोई एक शब्द एक ही बार आये पर उसके अर्थ अलग अलग निकलें वहाँ पर श्लेष अलंकार होता है।
जैसे :- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै मोती मानस चून।।
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