अलंकार क्या होता है?
उसके कितने भेद है?
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Answer:
भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं। इसके अलावा अन्य अलंकार भी हैं। इस कारण व्युत्पत्ति से उपमा आदि अलंकार कहलाते हैं। उपमा आदि के लिए अलंकार शब्द का संकुचित अर्थ में प्रयोग किया गया है।
Explanation:
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Answer:
अलंकार का शाब्दिक अर्थ है ” आभूषण “.
मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है, वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुसज्जित और अलंकृत देखना चाहता है। वह अपने कथन को भी शब्दों के सुंदर प्रयोग और विश्व उसकी विशिष्ट अर्थवत्ता से प्रभावी व सुंदर बनाना चाहता है। मनुष्य की यही प्रकृति काव्य में अलंकार कहलाती है।
मनुष्य सौंदर्य प्रिय प्राणी है। बच्चे सुंदर खिलौनों की ओर आकृष्ट होते हैं। युवक – युवतियों के सौंदर्य पर मुग्ध होते हैं। प्रकृति के सुंदर दृश्य सभी को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। मनुष्य अपनी प्रत्येक वस्तु को सुंदर रुप में देखना चाहता है , उसकी इच्छा होती है कि उसका सुंदर रूप हो उसके वस्त्र सुंदर हो आदि आदि।
सौंदर्य ही नहीं , मनुष्य सौंदर्य वृद्धि भी चाहता है और उसके लिए प्रयत्नशील रहता है , इस स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण मनुष्य जहां अपने रुप – वेश , घर आदि के सौंदर्य को बढ़ाने का प्रयास करता है , वहां वह अपनी भाषा और भावों के सौंदर्य में वृद्धि करना चाहता है। उस सौंदर्य की वृद्धि के लिए जो साधन अपनाए गए , उन्हें ही अलंकार कहते हैं। उनके रचना में सौंदर्य को बढ़ाया जा सकता है , पैदा नहीं किया जा सकता।
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