अलंकार पहचानिए
1. बरसत बारिद बूंद गहि
2. प्रतिभट कटक कटीले केते काटि काटि
3. विमल वाणी ने वीणा ली
4. भिखारिन को देख पट देत बार-बार (पट= कपड़ा, दरवाज़ा)
5. सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक।
जो करते विप्लव, उन्हें हरि का आतंक॥ (हरि= बंदर,भगवान)
6. चमक गई चपला चम चम
7. काली घटा का घमंड घटा।
8. वहै शब्द पुनि-पुनि परै, अर्थ भिन्न ही भिन्न ।
9. रघुपति राघव राजा राम
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10. कनक-कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय (कनक= सोना, धतूरा)
या खाए बौराए जग, वा पाए बौराए (या-इसको) (वा-उसको) (बौराए नशे में आना)
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अलंकार(Figure of speech) की परिभाषा
काव्य की शोभा में वृद्धि करने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं। अलंकार से काव्य में रोचकता, चमत्कार और सुन्दरता उत्पन्न होती है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अलंकार.को काव्य की आत्मा ठहराया है।
अलंकार–काव्य की शोभा बढ़ानेवाले तत्त्वों को ‘अलंकार’ कहते हैं।
अलंकार के भेद–प्रधान रूप से अलंकार के दो भेद माने जाते हैं–शब्दालंकार तथा अर्थालंकार। इन दोनों भेदों का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है
अलंकार का महत्त्व – Alankar Ka Mahatva
काव्य में अलंकार की महत्ता सिद्ध करने वालों में आचार्य भामह, उद्भट, दंडी और रुद्रट के नाम विशेष प्रख्यात हैं। इन आचार्यों ने काव्य में रस को प्रधानता न दे कर अलंकार की मान्यता दी है। अलंकार की परिपाटी बहुत पुरानी है। काव्य-शास्त्र के प्रारम्भिक काल में अलंकारों पर ही विशेष बल दिया गया था। हिन्दी के आचार्यों ने भी काव्य में अलंकारों को विशेष स्थान दिया है।
अलंकार कवि को सामान्य व्यक्ति से अलग करता है। जो कलाकार होगा वह जाने या अनजाने में अलंकारों का प्रयोग करेगा ही। इनका प्रयोग केवल कविता तक सीमित नहीं वरन् इनका विस्तार गद्य में भी देखा जा सकता है। इस विवेचन से यह स्पष्ट है कि अलंकार कविता की शोभा और सौन्दर्य है, जो शरीर के साथ भाव को भी रूप की मादकता प्रदान करता है। Please mark the answer as the branliest
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