Social Sciences, asked by ayphoton2530, 6 months ago

अल्लूरी सीताराम राजू किस विद्रोह के नेता थे ​

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Answered by Anonymous
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Hope it helped.....I don't even care

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Answered by nleyungboi
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वनवासी स्वातंत्र्य प्रिय हैं, उन्हें किसी बंधन में अथवा पराधीनता में नहीं जक़डा जा सकता है, इसीलिये उन्होंने सबसे पहले जंगलों से ही विदेशी आक्रांताओं एवं दमनकारियों के विरुद्ध उनका यह संघर्ष देश के स्वतंत्र होने तक निरंतर चलता रहा। आज हम कह सकते हैं कि जंगलों के टीलों से ही स्वाधीनता की योजना का आरंभ हुआ। यह प्रकृति पुत्र हैं, इसीलिए जंगलों से ही स्वतंत्रता का अलख जगाया। ऐसे प्रकृति प्रेमी वनवासी क्रांतिकारियों की लंबी शृंखला हैं। कई परिदृश्य में छाऐ रहे और कई अनाम रहे। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन स्वतंत्रता के संघर्ष में गुजारा। ऐसे ही महान क्रांतिकारी अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म ४ जुलाई १८९७ को विशाखापट्टणम जिले के पांड्रिक गांव में हुआ।

क्रांतिकारी, वीर राजू ने स्कूली शिक्षा के साथसाथ निजी रुचि के तौर पर वैद्यक और ज्योतिष का भी अध्ययन किया और यह अध्ययन उनके व्यवहारिक अभ्यास में भी लगा रहा। इसके कारण ही जब उसने युवावस्था में वनवासी समाज को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करना शुरू किया तो इन विधाओं की जानकारियों ने उसे अभूतपूर्व सहायता प्रदान की। राजू का पालनपोषण उसके चाचा अल्लूरी रामकृष्ण के परिवार में हुआ। इनके पिता अल्लूरी वेंकट रामराजू गोदावरी के माग्गूल ग्राम में रहते थे। उन्होंने बाल अवस्था में ही सीताराम राजू को यह बताकर क्रांतिकारी संस्कार दिए कि अंग्रेज ही तो हमें गुलाम बनाए हैं, जो देश को लूट रहे हैं। इन शब्दों की सीख के साथ ही पिता का साथ तो छूट गया, लेकिन विप्लव पथ के बीज लग चुके थे। युवावस्था में वनवासियों को अंग्रेजों के शोषण के विरुद्ध संगठित करना शुरू किया, जिसका आरंभ वनवासियों का उपचार व भविष्य की जानकारी देने से होता था। यही नहीं इस महान क्रांतिकारी ने महर्षि की तरह दो वर्ष तक सीतामाई नामक पह़ाडी की गुफा में अध्यात्म साधना व योग क्रियाओं से चिंतन तथा ताप विकसित किया। यही वह समय था, जब राजू ने वनवासियों और गिरिजनों की प़ीडा को करीब से जाना। उन्हें उठ ख़डा होने के लिए प्रेरित किया।

राजू के क्रांतिकारी साथियों में बीरैयादौरा का नाम विख्यात है। बीरैयादौरा का प्रारंभ में अपना अलग संगठन था। वह भी वनवासियों का ही एक संगठन था, जिन्होंने अंग्रेजों से युद्ध छ़ेड रखा था। यह बात सन्‌ १९१८ की है। अनंतर अंग्रेजों ने बीरैयादौरा को एक मुठभ़ेड में गिरफ्तार कर लिया, उसे जेल में रखा, लेकिन वह जेल की दीवार कूदकर जंगलों में भाग गया। उसके बाद बीरैयादौरा ने दल से संपर्क ज़ोडकर ब्रिटिश सत्ता से संग्राम जारी रखा। जिसमें वो दोबारा जेल भेज दिए गए। अंग्रेज बीरैयादौरा को फांसी पर लटका देते, परंतु उस समय सीताराम राजू का संगठन बहुत प्रबल हो चुका था। पुलिस राजू से थरथर कांपती थी। वह ब्रिटिश सत्ता को खुलेआम चुनौती देता था। कैदी बीरैयादौरा के लिए भी उसने अंग्रेज सत्ता को पहले से सूचना भिजवा दी थी कि ‘मैं बीरैया को रिहा करवाकर रहूंगा। दम हो तो रोक लेना।’ वही हुआ। एक दिन पुलिस दल जब बीरैया को हथक़डीब़ेडी से कसे अदालत ले जा रहा था, सीताराम राजू ने पुलिस टुक़डी पर धावा बोला दिया। दोनों तरफ से गोलियां चलीं, लेकिन गोलियों की बौछार में भी पुलिस दस्ता राजू का बाल बांका न कर सका और वह दिनदह़ाडे खुलेआम ल़डकर बीरैयादौरा को छ़ुडा ले गया। अंग्रेजी सत्ता के लिए राजू तथा बीरैया की खोज एक समस्या बनी रही। पुलिस छापे विफल होते रहे।

अंग्रेजों ने उसे पक़डवाने के लिए अखबारों व इश्तहारों में दस हजार रु नगद इनाम का एलान किया। सन्‌ १९२२२४ में यह धनराशि एक ब़डा प्रलोभन था। गांधीजी ने राजू के लिए ठीक ही कहा था कि ‘उस वीरात्मा का त्यागबलिदान, मुसीबतोंभरा जीवन, सच्चाई, सेवाभावना, लगन, निष्ठा और अदम्य हिम्मत हमारे लिए प्रेरणाप्रद है’। सुभाषचंद्र बोस ने कहा था ‘देशवासी उस अप्रतिम योद्धा के सम्मान में विनत हों। उसकी समर्पणभावना देशानुराग, असीम धीरज और पराक्रम गौरव गरिमा मंडित है’।

सीताराम राजू के संघर्ष और क्रांति की सफलता का एक कारण यह भी था कि वनवासी अपने नेता को धोखा देना, उनके साथ विश्वासघात करना नहीं जानते थे। कोई भी सामान्य व्यक्ति मुखबिर या गद्दार नहीं बना। आंध्र के रम्पा क्षेत्र के सभी वनवासी राजू को भरसक आश्रय, आत्मसमर्थक देते रहते थे। स्वतंत्रता संग्राम की उस बेला में उन भोलेभाले गृहहीन, वस्त्रहीन व सर्वहारा समुदाय का कितना ब़डा योगदान है कि अंग्रेजों के क़ोडे खाकर, लातघूंसे खाकर भी राजू को पक़डवा देना उन्हें स्वीकार नहीं हुआ। यही कारण है कि आज भी गोदावरी पार रम्पा क्षेत्र में कोई आदमी विश्वास नहीं करता कि राजू कभी पक़डा गया था और उसे ईस्ट कोस्ट स्पेशल पुलिस के चीफ कुंचू मेनन ने गोली मार दी।

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