अलाउद्दीन खिलजी एवं मोहम्मद बिन तुगलक प्रशासन के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए
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मुहम्मद बिन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में तुग़लक़ वंश का शासक था। ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'जूना ख़ाँ', मुहम्मद बिन तुग़लक़ (1325-1351 ई.) के नाम से दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसका मूल नाम 'उलूग ख़ाँ' था। राजामुंदरी के एक अभिलेख में मुहम्मद तुग़लक़ (जौना या जूना ख़ाँ) को दुनिया का ख़ान कहा गया है।
सम्भवतः मध्यकालीन सभी सुल्तानों में मुहम्मद तुग़लक़ सर्वाधिक शिक्षित, विद्वान एवं योग्य व्यक्ति था। अपनी सनक भरी योजनाओं, क्रूर-कृत्यों एवं दूसरे के सुख-दुख के प्रति उपेक्षा का भाव रखने के कारण इसे 'स्वप्नशील', 'पागल' एवं 'रक्त-पिपासु' कहा गया है। बरनी, सरहिन्दी, निज़ामुद्दीन, बदायूंनी एवं फ़रिश्ता जैसे इतिहासकारों ने सुल्तान को अधर्मी घोषित किया गया है।
अलाउद्दीन खिलजी की प्रशासनिक व्यवस्था की विस्तृत जानकारी बरनी के विवरण से ज्ञात होती है। अलाउद्दीन ने एक विशाल साम्राज्य स्थापित करने के बाद उसे प्रशासनिक रूप से सुदृढ़ किया। अपने पूर्वकालीन सुल्तानों की तरह अलाउद्दीन के पास भी कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका की सर्वोच्च शक्तियां विद्यमान थी। वह प्रशासन के केन्द्रीकरण में विश्वास रखता था। उसने प्रान्तों के सूबेदार तथा अन्य अधिकारियों को अपने पूर्ण नियंत्रण में रखा।
Memorable points
●अलाउद्दीन ने विशाल साम्राज्य स्थापित करने के बाद प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ किया।
●इसके लिए जिन प्रान्तों की सरकारें दुर्बल थीं, उन्हें दक्ष राज्यपालों के नियंत्रण में लाया गया।
●अलाउद्दीन खिलजी अपने प्रशासनिक कार्यों का संचालन--दीवान-ए-विजारत, दीवान-ए-आरिज, दीवान-ए-इंशा व दीवान-ए-रसातल के सहयोग से करता था।
●दीवान-ए-विजारत--यह वित्त विभाग होता था। जो वजीर के अधीन होता था।
●दीवान-ए-आरिज--यह सैन्य विभाग था। इसका सर्वोच्च अधिकारी आरिज-ए-मुमालिक कहलाता था।
●दीवान-ए-इंशा--यह शाही सचिवालय होता था। इसका प्रमुख दबीर-ए-मुमालिक कहलाता था।
●दीवान-ए-रसातल--यह विदेश विभाग होता था।
●दीवान-ए-रियासत--इस विभाग की स्थापना अलाउद्दीन खिलजी ने की थी। यह विभाग बाजार व्यापारियों पर नियंत्रण रखता था।
●दिल्ली के सुल्तानों में अलाउद्दीन प्रथम सुल्तान था जिसने एक स्थायी केन्द्रीय सेना गठित की।
●उसने घोड़ों को दागने और सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा आरम्भ की।
●सैनिकों को नकद वेतन देने की प्रथा की शुरुआत करने वाला प्रथम सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी था।
●दीवान-ए-आरिज--प्रत्येक सैनिक की नामावली एवं हुलिया रखता था।
●भली-भांति जांच परख कर भर्ती किये गये सैनिक को मुर्रत्तब कहा जाता था।