Hindi, asked by ishitaghai5, 1 year ago

ALAASYA PAR NIBHANDH IN HINDI!!!!!!????

Answers

Answered by Anonymous
1

ऐसी मानसिक या शारीरिक शिथिलता जिसके कारण किसी काम को करने में मन नहीं लगता आलस्य है। कार्य करने में अनुत्साह आलस्य है। सुस्ती और काहिली इसके पर्याय हैं। संतोष की यह जननी है, जो मानवीय प्रगति में बाधक है। वस्तुतयह ऐसा राजरोग है, जिसका रोगी कभी नहीं संभलता। असफलता, पराजय और विनाश आलस्य के अवश्यम्भावी परिणाम हैं। आलसियों का सबसे बड़ा सहारा ‘भाग्य’ होता है। उन लोगों का तर्क होता है कि होगा वही जो रामरुचि रखा।’ प्रत्येक कार्य को भाग्य के भरोसे छोड़कर आलसी व्यक्ति परिश्रम से दूर भागता है। इस पलायनवादी प्रवृत्ति के कारण आलसियों को जीवन में सफलता नहीं मिल पाती। वस्तुतआलस्य और सफलता में 36 का आंकड़ा है।

भाग्य और परिश्रम के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए सभी विचारकों ने परिश्रम के महत्व को स्वीकार किया है और भाग्य का आश्रय लेने वालों को मूर्ख और कायर बताया है। बिना परिश्रम के तो शेर को भी आहार नहीं मिल सकता। यदि वह आलस्य में पड़ा रहे, तो भूखा ही मरेगा। आलस्य की भत्र्सना सभी विद्वानों, संतों, महात्माओं और महापुरुषों ने की है।

स्वामी रामतीर्थ ने आलस्य को मृत्यु मानते हुए कहा’आलस्य आपके लिए मृत्यु है और केवल उद्योग ही आपका जीवन है। संत तिरूवल्लुवर कहते हैं, ‘उच्व कुल रूपी दीपक, आलस्य रूपी मैल लगने पर प्रकाश में घुटकर बुझ जाएगा।’ संत विनोबा का विचार है, ‘दुनिया में आलस्य बढ़ाने सरीखा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।’ विदेशी विद्वान जेरेमी टेरल स्वामी रामतीर्थ से सहमति प्रकट करते हुए कहता है, ‘आलस्य जीवित मनुष्य को दफना देता है।’

आलस्य के दुष्परिणाम केवल विद्यार्थी जीवन में भोगने पड़ते हों, ऐसी बात नहीं। जीवन के सभी क्षेत्रों में उसके कड़वे पूंट पीने पड़ते हैं। शरीर को थोड़ा कष्ट है, आलस्यवश उपचार नहीं करवाते। रोग धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। जब आप डॉक्टर तक पहुँचते हैं, तब तक शरीर पूर्ण रूप से रोगग्रस्त हो चुका होता है, रोग भयंकर रूप धारण कर चुका होता है।

खाने की थाली आपके सामने है। खाने में आप अलसा रहे हैं, खाना अस्वाद बन जाएगा। घर में कुर्सी पर बैठेबैठे छोटी-छोटी चीज के लिए बच्चों को तंग कर रहे हैं, न मिलने या विलम्ब से मिलने पर उन्हें डांट रहे हैं, पीट रहे हैं, घर का वातावरण अशांत हो उठता है-केवल आपके थोड़े से आलस्य के कारण।

आलस्य में दरिद्रता का वास है। आलस्य परमात्मा के दिए हुए हाथपैरों का अपमान है। आलस्य परतन्त्रता का जनक है। इसीलिए देवता भी आलसी से प्रेम नहीं करते।’ (ऋग्वेद आलसी मनुष्य सदा ऋणी और दूसरों के लिए भार रूप रहता है, जबकि परिश्रमी मनुष्य ऋण को चुकाता है तथा लक्ष्मी का उसके यहाँ वास होता है। आलस्य निराशा का मूल है और उद्योग सफलता का रहस्य। उद्यम स्वर्ग है और आलस्य नरक। आलस्य सब कामों को कठिन और परिश्रम सरल कर देता है।

पाश्चात्य विद्वान रस्किन ने चेतावनी देते हुए लिखा है, ‘आलसियों की तरह जीने से समय और जीवन पवित्र नहीं किये जा सकते।’ अत: आलस्य को अपना परम शत्रु समझो और कर्तव्यपरायण बन परिस्थिति का सदुपयोग करते हुए उसे अपने अनुकूल बनाओ। कारण, कार्य मनोरथ से नहीं, उद्यम से सिद्ध होते हैं। जीवन के विकास-बीज आलस्य से नहीं, उद्यम से विकसित होते हैं।


smishra01: copy paste
Anonymous: yeah
smishra01: XD D
smishra01: msg me aao
Anonymous: hmm
smishra01: yeah
aadarsh001: jaan
Similar questions