अलक्षेन्द्रः सेनापतिं किम् आदिशत् ?
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अलक्षेन्द्रः सेनापतिं किम् आदिशत् ?उत्तर अलक्षेन्द्रः सेनापतिम् आदिशत् यत् “वीरस्य ...
अलक्षेन्द्रः सेनापतिं आदिशत् “वीरस्य पुरुराजस्य बन्धनानि मोचय”
अर्थात्
"वीर पुरूराज के बंधन खोल दो"
Explanation:
सिकंदर- तो मेरा भारत पर विजय पाना कठिन है ?
पुरूराज- कठिन ही नहीं, यह असंभव है |
सिकंदर- (क्रोध से) क्या तुम भूल गए तुम विश्वविजेता सिकंदर के सामने खड़े हो |
पुरूराज- जानता हूँ किन्तु हम भारतवासी गीता के संदेश को नहीं भूलते |
सिकंदर- क्या है गीता का संदेश ?
पुरूराज- सुनो "यदि तुम युद्द में मारे गए तो स्वर्ग प्राप्त करोगे और जीते तो पृथ्वी का राज्य भोगोगे | इसलिए बिना इच्छा और मोह के युद्ध करो |"
सिकंदर- इसे छोड़ो | तुम हमारे कैदी हो | बताओ तुमसे कैसा व्यवहार किया जाए ?
पुरूराज- जैसा एक वीर दूसरे वीर के साथ करता है |
सिकंदर- (पुरूराज की वीरता से हर्षित होकर) धन्य हो वीर | तुम वास्तव में वीर हो |
सेनापति- सम्राट क्या आज्ञा है ?
सिकंदर- वीर पुरूराज के बंधन खोल दो |
More Question:
संस्कृत में गंगा नदी पर अनुच्छेद ।
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