alnkar all and, thier definations
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totally there are 3 types of alankar slesh,anupras,yamak
Harvinder1611:
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अलंकार :- काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व अलंकार कहे जाते हैं।
अलंकार के दो भेद हैं। शब्दालांकर अर्थालंकार
1) शब्दालंकार- ये शब्द पर आधारित होते हैं।
शब्दालंकार तीन प्रकार के हैं - 1)अनुप्रास , 2(यमक ,3) शलेष ।
1)अनुप्रास अलंकार : काव्य में जब एक वर्ण से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की रसानुकूल दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रासअलंकार होता है।
जैसे : तरनि-तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
यहाँ पर त की आवृत्ति बार बार है।
2)यमक अलंकार :जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँयमक अलंकार होता है।
जैसे : कनक कनक तें सौगुनी, मादकता अधिकाय।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।।
यहाँ पर पहले में कनक का अर्थ ‘सोना’ तथा दूसरे का ‘धतूरा’ है।
3)श्लेष अलंकार : जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है।
जैसे : पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून।
यहाँ पर ‘पानी’ शब्द का अर्थ : मोती के संदर्भ में अर्थ है चमक, मनुष्य के संदर्भ में ‘इज्जत’ तथा चून(आटा) के संदर्भ में जल है ।
अर्थालंकार:- ये अर्थ पर आधारित होते हैं।
अर्थालंकार के भेद हैं. - उपमा , रूपक ,उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान आदि।
1) उपमा- जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है
जैसे - हरिपद कोमल कमल से ।
यहाँ पर हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई है ।
2) रूपक- जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद बताया जाता है।
जैसे -अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी
यहाँ पर अम्बर रूपी पनघट।तारा रूपी घट।ऊषा रूपी नागरी है ।
3) उत्प्रेक्षा- उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार कहलाता है।
जैसे - मुख मानो चन्द्रमा है।
यहाँ पर मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है।
Note: इस अलंकार की पहचान :मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से हो जाती है।
अलंकार के दो भेद हैं। शब्दालांकर अर्थालंकार
1) शब्दालंकार- ये शब्द पर आधारित होते हैं।
शब्दालंकार तीन प्रकार के हैं - 1)अनुप्रास , 2(यमक ,3) शलेष ।
1)अनुप्रास अलंकार : काव्य में जब एक वर्ण से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की रसानुकूल दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रासअलंकार होता है।
जैसे : तरनि-तनुजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
यहाँ पर त की आवृत्ति बार बार है।
2)यमक अलंकार :जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँयमक अलंकार होता है।
जैसे : कनक कनक तें सौगुनी, मादकता अधिकाय।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।।
यहाँ पर पहले में कनक का अर्थ ‘सोना’ तथा दूसरे का ‘धतूरा’ है।
3)श्लेष अलंकार : जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो , किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष अलंकार है।
जैसे : पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून।
यहाँ पर ‘पानी’ शब्द का अर्थ : मोती के संदर्भ में अर्थ है चमक, मनुष्य के संदर्भ में ‘इज्जत’ तथा चून(आटा) के संदर्भ में जल है ।
अर्थालंकार:- ये अर्थ पर आधारित होते हैं।
अर्थालंकार के भेद हैं. - उपमा , रूपक ,उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक , विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास , भ्रांतिमान आदि।
1) उपमा- जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय की तुलना उपमान से की जाती है
जैसे - हरिपद कोमल कमल से ।
यहाँ पर हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से कोमलता के कारण की गई है ।
2) रूपक- जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद बताया जाता है।
जैसे -अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी
यहाँ पर अम्बर रूपी पनघट।तारा रूपी घट।ऊषा रूपी नागरी है ।
3) उत्प्रेक्षा- उपमेय में उपमान की कल्पना या सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार कहलाता है।
जैसे - मुख मानो चन्द्रमा है।
यहाँ पर मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है।
Note: इस अलंकार की पहचान :मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों से हो जाती है।
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