अमीबा में पोषण की प्रक्रिया मानव से भिन्न है?कैसे?
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जलस्रोत, तालाब, झील, नम मिटटी में पाया जाने वाला अमीबा ऐसा ही एक कोशिकीय जिव है | इसके भोजन अंतर्ग्रहण और पाचन का तरीका अत्यंत रोचक है | इसके कोशिका के चरों और कोशिका झिल्ली होती है जिसके अंदर कोशिका द्रव्य भरा होता है | इसमें केन्द्रक तथा अनेक धानियाँ (खली स्थान) होता है | अमीबा की विशेषता है की वह लगातार अपनी आकर और स्थिति बदलता रहता है | इसमें एक या अधिक अँगुली जैसे उभर निकलते रहते है जिसे पादाभ (कृत्रिम पाँव) कहते है | ये अमीबा के गति करने तथा भोजन पकड़ने में मदद करते है |
अमीबा का आहार सूक्ष्मजीव जैसे, जीवाणु, कवक आदि है | जब यह भोजन के संपर्क में आता है या भोजन इसके आस-पास होता है, यह अपने पादाभों को विकसित कर भोजन को चरों तरफ से घेर लेता है | दोनों ओर से विकसित पादाभ आपस में मिलकर एक हो जाते है | भोजन इस प्रकार बने खाद्दधानी में ही पाचक रसों का स्राव होता है जो खाद्य पदार्थों पर क्रिया कर उन्हें सरल पदार्थों में बदल देते है | इस पारकर पचा हुआ भोजन धीरे-धीरे अवशोषित हो जाता है जो अमीबा की वृद्धि, रख रखाव और उसकी संख्या वृद्धि (गुणन) में मदद करता है | यहाँ भी पचा हुआ अपशिष्ट पदार्थ खाद्यधानी से होकर कोशिका द्वारा बहार निकल दिया जाता है
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मानव के पास पोषण की पूरी प्रक्रिया के लिए जटिल संरचनाएं हैं, जिसमें निम्न चरणों का अंतर्ग्रहण, पाचन और भोजन शामिल है, जबकि अमीबा की एक सरल प्रक्रिया है, जिसमें यह स्यूडोपोडिया की मदद से भोजन को संलग्न करता है और इसे भोजन के रिक्त स्थानों में फंसाता है।
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