अम-झम, झम-झम मेघ बरसते हैं सावन के.
छम-छम-छम गिरती बूंदें तरुओं से छन के।
चम-चम बिजली चमक रही रे उर में धन के.
थम-थम दिन के तम में सपने जगते मन के। अर्थ
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सन्दर्भ : सुमित्रानंदन पंत की इन पंक्तियों में वर्षा ऋतु का वर्णन हुआ है।सावन के महीने में वर्षा के स्वरूप का कवि ने नाद सौंदर्य के द्वारा आकर्षक वर्णन प्रस्तुत किया है |
भावार्थ : कवि कहते हैं सावन के बादल झम-झम बरस रहे हैं | वर्षा की बूंदे पेड़ों से छन-छनकर बरसती है। बिजली, बादलों के ह्रदय में चम-चम चमक रही हैं । वर्षा के कारण दिन में अंधेरा छा गया है | दिन में अंधियारा थमा हुआ प्रतीत होता है अर्थात रात्रि-सा आलम हो गया है जिसमें मन के सपने जगने लगे हैं अर्थात मन विविध स्वप्न देखने लगा है।
विशेष : पंक्तियों में अनुप्रास तथा मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है । पुनरुक्ति का प्रयोग करके कवि ने इन पंक्तियों को रुचिकर बना दिया है। पाठक पढने के साथ-साथ इसे गाना या गुनगुनाना भी चाहेंगे |
{ शब्दार्थ : मेघ =बादल , वारिद , तरु = वृक्ष ,पेड़ , उर =ह्रदय , घन =बादल ,तम =अंधकार , झम झम , चम चम, छम छम, थम थम , ये शब्द नाद सौन्दर्य प्रगट करते हैं | जैसे हम कहते हैं - नदियाँ कलकल बहती है |}
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