अमीर बुढिया-दो नौकर - मुरगे की बांग सुनकर बुढिया का जाग जाना- बुढिया का नौकरों को जगाना- उन्हें काम पर लगाना- नौकर परेशान- नौकरों का तंग आना- आपस में षडयंत्र - मुरगे को मार डालना- बुढिया का वक्त बेवक्त जाग जाना- पहले से अधिक काम पछतावा- सीख
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रायपुर। मुर्गा लड़ाई बस्तर के आदिवासियों का खास शगल है। क्रेज इतना कि हर दांव में लाखों रुपए लगते हैं। बस्तर में मुर्गा लड़ाई का कोई खास सीजन नहीं हैं। यहां के गांवों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों में मुर्गे लड़ाए जाते हैं। कैसे तैयार किए जाते हैं लड़ाई के लिए मुर्गे... - मुर्गा लड़ाई के शौकीनों की प्रतिष्ठा मुर्गे से जुड़ी होती है, लिहाजा उसे बड़े जतन से पाला जाता है। - मुर्गे के मालिक अपने परिवार से कहीं ज्यादा मुर्गे का ख्याल रखते हैं। - वे मुर्गे को जंगलों में मिलने वाली जड़ी बूटियां खिलाते हैं जिससे उसकी स्फूर्ति और वार करने की क्षमता बढ़ जाती है। - मुर्गे को हिंसक बनाने के लिए गौर (बायसन) का पित्त भी खिलाया जाता है। - साप्ताहिक बाजार के एक हिस्से में गोल घेरा बनाकर मुर्गों की लड़ाई कराई जाती है, इस जगह को कुकड़ा गली कहते हैं। - यहां इलाके के दूर-दूर के गांवों से लोग विशेष रूप से ट्रेन्ड किए गए मुर्गे लेकर पहुंचते हैं। - लड़ाई शुरू होने से पहले मुर्गे के पैर में धागे की मदद से छुरी बांध देते हैं। - इस छुरी से मुर्गा प्रतिद्वंदी पर वार करता है, प्रतिद्वंदी मुर्गे की मौत के बाद ही खेल खत्म माना जाता है। - पुराने समय में लड़ाई जीतने के लिए मुर्गे के शरीर में सियार की चर्बी का लेप लगा दिया जाता था, जिसकी बदबू से प्रतिद्वंदी मुर्गा मैदान छोड़कर भाग जाता था। स्टेरॉयड भी दिए जाते हैं - प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से मुर्गे की ताकत बढ़ाने के अलावा मुर्गों को स्टेरॉयड जैसी दवाएं भी दी जाती हैं। - इसके लिए ग्रामीण अवैध तरीके से डेक्सामेथासोन, बीटा मैथासोन के इंजेक्शन और प्रेडनीसोल की गोलियां मुर्गे को खिलाते हैं। - ये दवाएं आसानी से मिल जाती हैं और मुर्गों पर इनका असर बेहद तेजी से होता है। - इन दवाओं का नशा इतना तेज होता है कि लड़ते वक्त गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी मुर्गा मैदान नहीं छोड़ता