अमेरिका की क्रांति के समय अमेरिका की कितनी जनसंख्या गुलाम थी
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अमेरिका उपनिवेशों की क्रांति विश्व इतिहास की प्रमुख घटनाओं में से एक है और इतिहास में इसका अपना ही स्थान है। तेरह उपनिवेशों में आबाद लोगों में काफी भिन्नता थी और उनमें से बहुतों को इंग्लैण्ड से कोई विशेष शिकायत भी न थी, फिर भी परिस्थितियों ने उन्हें एकता के सूत्र में बांध दिया था और वे शक्तिशाली इंग्लैण्ड के विरुद्ध उठ खङे हुए और अंत में इंग्लैण्ड के निरंकुश शासन से मुक्त होने में सफलता मिली। उपनिवेशों के इस असंतोष का मुख्य कारण सामान्यतया इंग्लैण्ड की सरकार द्वारा उपनिवेशों पर लगाए गए विभिन्न करों को बताया जाता है, परंतु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि उनके असंतोष एवं विद्रोह के मूल में अन्य बहुत से कारण विद्यमान थे। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
उपनिवेशों में इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम का अभाव –
इंग्लैण्ड को छोङकर अमेरिका के तेरह उपनिवेशों में बसने वाले अधिकांश लोगों में इंग्लैण्ड के प्रति कोई प्रेम नहीं था। बहुत से लोग धार्मिक अत्याचारों से परेशान होकर उपनिवेशों में आकर बस गये थे। ऐसे लोगों को इंग्लैण्ड के चर्च तथा वहाँ की सरकार से कोई विशेष सहानुभूति नहीं थी। अंग्रेजों के अलावा अन्य यूरोपीय देशों के बहुत से लोग भी उपनिवेशों में आकर बस गये थे। उन लोगों से इंग्लैण्ड के लिये कोई विशेष सहानुभूति की आशा नहीं की जा सकती थी। 17 वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में सजा देकर भी अपराधी लोगों को इन बस्तियों में भेज दिया जाता था। जेल के अधिकारियों तथा जजों को प्रोत्साहित किया जाता था, कि अपराधियों को दंड भोगने की बजाय अमेरिका जाकर बसने का अवसर दें। ऐसे लोगों की संतानों से इंग्लैण्ड के लिये प्रेम की आशा करना निरर्थक था। इंग्लैण्ड की सरकार ने जार्जिया के अलावा और किसी उपनिवेश को स्थापित करने में कोई प्रत्यक्ष भाग नहीं लिया और उनके राजनीतिक निर्देशन में क्रमशः ही हस्तक्षेप किया। अतः उपनिवेशों पर शुरू से ही इंग्लैण्ड सरकार के प्रभाव और नियंत्रण का अभाव था। इसके अलावा उस समय यातायात के साधन इतने खराब थे, कि इंग्लैण्ड और ये उपनिवेश एक-दूसरे के संपर्क में अधिक न आ सके।
चारित्रिक भिन्नता
उपनिवेश में रहने वाले लोगों और इंग्लैण्ड में रहने वाले लोगों में काफी चारित्रिक भिन्नता था। यह ठीक है, कि उपनिवेशियों की 90 प्रतिशत जनसंख्या अंग्रेजों की थी, परंतु ये अंग्रेज इंग्लैण्ड के अंग्रेजों से भिन्न थे। ट्रेवेलियन ने लिखा है, कि जहां अंग्रेज समाज पुराना था और उसमें पेचीदापन और कृत्रिमता आ चुकी थी, वहां अमेरिकन लोग अभी नए-नए और सरल थे। उन्होंने अपनी पूर्व धारणाओं और रीति-रिवाजों को त्यागर एक नया जीवन अपनाया था और अब वे अमेरिकी बन गए। अंग्रेजों और अमेरिकी लोगों में धार्मिक मतभेद भी थे। उपनिवेशों के ज्यादातर निवासी प्यूरिटन थे, जबकि इंग्लैण्ड के लोग इंग्लैण्ड के चर्च के अनुयायी थे। उपनिवेशियों में समानता की भावना अधिक प्रबल थी, जबकि इंग्लैण्ड में अभी भी वर्ग भेद बना हुआ था और समाज में कुलीन वर्ग के लोगों की प्रधानता थी। इस प्रकार दोनों के दृष्टिकोण भिन्न थे।
उपनिवेशियों का स्वतंत्रता प्रेम
उपनिवेशों में आबाद लोग इंग्लैण्ड के लोगों की अपेक्षा अधिक उत्साही और स्वतंत्रताप्रिय थे। उनमें जनतंत्र शासन-पद्धति और स्वतंत्रता का इंग्लैण्ड के लोगों से अधिक प्रचार था। इसकी स्पष्ट झलक वर्जीनिया के प्रथम अधिकार – पत्र में देखने को मिलती है, जिसमें जोर देकर कहा गया था कि, बसने वालों को सभी स्वाधीनताएँ, मताधिकार एवं रियासतें प्राप्त होंगी, ठीक उसी तरह जैसी वे इंग्लैण्ड में जन्म लेने पर प्राप्त करते। यह एक अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण बुनियादी सिद्धांत था, परंतु जब इंग्लैण्ड की संसद ने अमेरिकी उपनिवेशों को साम्राज्यवादी नीति के अनुरूप ढालने की ओर ध्यान दिया तो काफी देर हो चुकी थी। इस समय तक बस्तियाँ स्वयं शक्तिशाली और संपन्न हो चुकी थी। इस समय तक बस्तियाँ स्वयं शक्तिशाली और संपन्न हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में उपनिवेशी लोग भला यह कैसे गवारा कर सकते थे, कि दूसरे लोग उनको यह सिखाएँ कि वे किस तरह अपना शासन भार संभालें। वे किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता को त्यागने के लिये तैयार न थे। वे चाहते थे, कि अपनी परिस्थितियों के अनुकूल कानून वे स्वयं बनाएँ। अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वे रूढिवादी और पुरानी लकीरों पर चलने वाले इंग्लैण्ड से स्वतंत्र होना चाहते थे।
दोषपूर्ण शासन व्यवस्था
उपनिवेशों की शासन व्यवस्था भी संतोषजनक थी और उसमें कई प्रकार के दोष विद्यमान थे। शासन व्यवस्था के तीन प्रमुख अंग थे – गवर्नर, गवर्नर की कार्यकारिणी समिति और विधायक सदन अथवा असेम्बली। गवर्नर और उसकी कार्यकारिणी समिति सम्राट के अंतर्गत थी और वे विधायक सदन के प्रति उत्तरदायी नहीं होते थे। विधायक सदन में जनता द्वारा निर्वाचित सदनों के हाथ में था। ऐसी स्थिति में गवर्नरों के लिये जनता के प्रतिनिधियों का विरोध करना बहुत ही कठिन काम था। इसका एक अन्य कारण भी था, कि शासन कार्य चलाने वालों – गवर्नर सहित सभी लोगों का वेतन तय करने का अधिकार विधायक सदनों के पास था। और कभी – कभी वे अपनी इच्छानुसार किसी भी गवर्नर अथवा जज के वेतन की धनराशि की माँग को अस्वीकृत कर देते थे। उपनिवेशों के विधायक सदनों का यह रवैया इंग्लैण्ड की सरकार को बहुत बुरा लगता था। क्योंकि इससे गवर्नरों और जजों की महान हानि तो होती ही थी, अपितु उनके अधिकार प्रयोग पर भी बंधन लग जाता था, और ये अधिकारी अपने आपको स्वतंत्रतापूर्वक काम करने में असमर्थ पाते थे।