अमृता शेरगिल के जीवन की यादगार घटना बताइए ?
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जन्म: 30 जनवरी 1913, बुडापेस्ट, हंगरी
मृत्यु: 5 दिसम्बर 1941, लाहौर, ब्रिटिश इंडिया
कार्यक्षेत्र: चित्रकारी
अमृता शेरगिल एक सुप्रसिद्ध भारतीय महिला चित्रकार थीं जिन्हें 20वीं शताब्दी के भारत का एक महत्वपूर्ण महिला चित्रकार माना जाता है। उनकी कला के विरासत को ‘बंगाल पुनर्जागरण’ के दौरान हुई उपलब्धियों के समकक्ष रखा जाता है। उन्हें भारत का सबसे महंगा महिला चित्रकार भी माना जाता है। 20वीं सदी की इस प्रतिभावान चित्रकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण ने सन 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की सूचि में शामिल किया। सिख पिता और हंगरी मूल की मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह पुत्री मात्र 8 वर्ष की आयु में पियानो-वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।
प्रारंभिक जीवन
अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी 1913 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में हुआ था। उनके पिता का नाम उमराव सिंह शेरगिल मजीठिया और माता का नाम एंटोनी गोट्समन था। उनके पिता संस्कृत-फारसी के विद्वान व नौकरशाह थे जबकि अमृता की माता हंगरी मूल की यहूदी ओपेरा गायिका थीं। अमृता अपने माता-पिता की दो संतानों में सबसे बड़ी थीं। उनकी छोटी बहन का नाम इंदिरा शेरगिल (बाद में सुन्दरम) था। उनका ज्यादातर बचपन बुडापेस्ट में ही बीता। वे मशहूर इन्दोलोजिस्ट एर्विन बकते की भांजी थीं। बकते ने अमृता के कार्य का समीक्षा किया और आगे बढ़ने में मदद की। बकते ने ही अमृता को अपने चित्रकारी के लिए नौकरों-चाकरों को मॉडल्स के रूप में लेने के लिए प्रोत्साहित किया।
सन 1921 में अमृता शेरगिल का परिवार शिमला (समर हिल) आ गया। अमृता ने जल्द ही पियानो ओर वायलीन सीखना प्रारंभ कर दिया और मात्र 9 वर्ष की उम्र में ही अपनी बहन इंदिरा के साथ मिलकर उन्होंने शिमला के गैएटी थिएटर में संगीत कार्यक्रम पेश करना और नाटकों में भाग लेना प्रारंभ कर दिया। सन 1923 में अमृता की मां एंटोनी एक इतालवी मूर्तिकार के संपर्क में आयीं जो शिमला में ही रहता था और जब वो सन 1924 में इटली वापस जा रहा था तब एंटोनी अपनी बेटी अमृता को लेकर उसके साथ इटली चली गयी जहाँ उसका दाखिला फ्लोरेंस के एक आर्ट स्कूल में करा दिया। अमृता इस आर्ट स्कूल में ज्यादा समय तक नहीं रहीं और जल्द ही भारत लौट आई पर वहां पर उन्हें महान इतालवी चित्रकारों के कार्यों के बारे में जानकारी हासिल हुई।
16 वर्ष की उम्र में अमृता अपनी मां के साथ चित्रकारी सीखने पेरिस चली गयीं। पेरिस में उन्होंने कई प्रसिद्द कलाकारों जैसे पिएरे वैलंट और लुसिएँ साइमन और संस्थानों से चित्रकारी सीखी। अपने शिक्षक लुसिएँ साइमन, चित्रकार मित्रों और अपने प्रेमी बोरिस तेज़लिस्की के प्रभाव में आकर उन्होंने यूरोपिय चित्रकारों से प्रेरणा ली। उनकी शुरूआती पेंटिंग्स में यूरोपिय प्रभाव साफ़ झलकता है। सन 1932 में उन्होंने अपनी पहली सबसे महत्वपूर्ण कृति ‘यंग गर्ल्स’ प्रस्तुत की जिसके परिणामस्वरूप उन्हें सन 1933 में पेरिस के ग्रैंड सालों का एसोसिएट चुन लिया गया। यह सम्मान पाने वाली वे पहली एशियाई और सबसे कम उम्र की कलाकार थीं।
करियर
सन 1934 में उनके मन में भारत लौटने की तीव्र लालसा उत्पन्न हुई। वापस आकर उन्होंने अपने आप को भारत की परंपरागत कला की खोज में लगा दिया और अपनी मृत्यु तक यह कार्य करती रहीं। इसी दौरान उन्हें ब्रिटिश पत्रकार और लेखक मैल्कम मग्गरिज से प्रेम हो गया। वे कुछ समय तक शिमला के अपने पुस्तैनी घर में रहीं और सन 1936 के आस-पास भारतीय कला की खोज में यात्रा के लिए निकल पड़ीं। इस कार्य में उनकी मदद कार्ल खंडालावाला ने की। वे मुग़ल और पहाड़ी चित्रकारी से बहुत प्रभावित हुईं और अजंता के गुफाओं की चित्रकारी ने भी उन्हें बहुत प्रभावित किया।
सन 1937 में उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा की और अपनी दक्षिण भारतीय रचना त्रय– ‘ब्राइड्स टॉयलेट’, ‘ब्रह्मचारीज’ और ‘साउथ इंडियन विल्लेजर्स गोइंग टू मार्केट’ – प्रस्तुत की। इन रचनाओं में उनकी भारतीय विषयों से सहानुभूति और संवेदना साफ़ झलकती है। यह वो समय था जब उनकी कला में पूर्ण परिवर्तन हो चुका था – यह परिवर्तन था भारतीय विषय और उनकी अभिव्यक्ति।
सन 1938 में डॉ विक्टर एगन के साथ विवाह के पश्चात अमृता गोरखपुर के सराया स्थित अपने पैतृक स्थान चली गयीं और वहीँ रहकर चित्रकारी करने लगीं। इस दौरान उन्होंने जो कार्य किया उसका प्रभाव भारतीय कला पर उतना ही पड़ा जितना कि रविंद्रनाथ टैगोर और जामिनी रॉय के कार्यों का। रविंद्रनाथ और अबनिन्द्रनाथ की कला ने अमृता शेरगिल को भी प्रभावित किया था जिसका उदाहरण है अमृता द्वारा किया गया महिलाओं का चित्रण।
सराया प्रवास के दौरान उन्होंने अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण पेंटिंग्स पर कार्य किया और ग्रामीण परिवेश का भी चित्रण किया। ‘विलेज सीन’, ‘इन द लेडीज एन्क्लोसर’ और ‘सिएस्टा’ आदि पेंटिंग्स इन विषयों को भली-भांति चित्रित करती हैं। ‘इन द लेडीज एन्क्लोसर’ और ‘सिएस्टा’ जैसी पेंटिंग्स उनके ‘मिनिएचर’ पद्धति को दर्शाती हैं जबकि ‘विलेज सीन’ पर पहाड़ी स्कूल का प्रभाव साफ़-साफ़ दीखता है।
हालाँकि अमृता शेरगिल का सम्बन्ध ब्रिटिश राज से था पर वे कांग्रेस की समर्थक थीं। वे गरीब, व्यथित और वंचित समाज से हमदर्दी रखती थी जो उनके कला में भी झलकता है। वे गांधीजी के दर्शन व जीवन शैली से भी बहुत प्रभावित थीं। पंडित नेहरु उनकी सुन्दरता और योग्यता के बहुत कायल थे और सन 1940 में गोरखपुर दौरे के दौरान वे अमृता से मिले भी थे।
सितम्बर 1941 में अमृता लाहौर चली गयीं जो उस समय एक बड़ा सांस्कृतिक और कला केंद्र था। वे लाहौर में 23, गंगा राम मेन्शन, द मॉल, में रहती थीं।
सन 1941 में अमृता शेरगिल बहुत बीमार हो गयीं और कोमा में चली गयीं। 6 दिसम्बर 1941 को उनकी मृत्यु लाहौर में हो गयी। उनकी मृत्यु का सही कारण तो आजतक नहीं पता चल पाया पर ऐसा माना जाता है कि असफल गर्भपात उनकी मृत्यु का कारण बना।
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sis plzz aise mt bola karo...........
bas apne following check kar rhi hu......
or mai sabko reply karti hu sis.............
aisa nhi hai bas thoda time lgta hai......