अमृत वाणी
मधुर बचन है औषधी, कटुक बचन है तीर ।
सवन द्वार है संचर, सालै सकल सरीर ।।1।।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न कोय।2।।
गुरु कुम्हार सिष कुंभ है, गढ़ि गदि काढ़े खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट ।।3।।
जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजिए ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहना दो म्यान।।441
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।।
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय।।5।।।
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय।।6।।
तरुवर फल नहि खात है, सरवर पियहिं न पान ।।
कहि रहीम पर-काज हित, संपति संचहिं सुजान ।।।
रहिमन बिपदा हु भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।2।।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखहु गोय।
सुनि इठिलेहै सब लोग, बांटि न लैहै कोय।। ।।
रहिमन निज संपति बिना, कोउ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, रवि नहिं सकै बचाया
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तरवारि।।5।।
जे गरीब पर हित करै, ते रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।6।।
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1 isme kavi kahte hai ki madhur vachan ausadhi yani dawa hai kharab hai teer sab thik hone ke baad log khush nhi hai
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