अमर ज्योति आरंभ करने से पहले उमा जी ने क्या जानकारी जुटाई
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O अमर ज्योति आरंभ करने से पहले उमा जी ने क्या जानकारी जुटाई।
► अमर जवान चैरिटेबल संस्था शुरू करने से पहले उमा जी ने यह जानकारी जुटाई की शारीरिक रूप से अक्षम और शारीरिक रूप से सक्षम दोनों ही प्रकार के बच्चों के व्यवहार में क्या अंतर होता है। शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए किस-किस तरह की परेशानियाँ आती हैं।
इन्होंने ये जानकारी जुटाने के लिये सबसे पहले 1981 में एक कार्यशाला शुरु की। इसमें शारीरिक रूप से सक्षम और अक्षम दोनों तरह के बच्चे थे। उन्होंने दोनों तक के बच्चों के व्यवहार में बारीकी से अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि जो बच्चे शारीरिक के रूप से अक्षम थे यानी दृष्टिबाधित, सीमित बुद्धि वाले, श्रवण बाधित, सीखने की समस्या वाले, बोली और संचार की समस्या वाले, अन्य तरह की स्वास्थ्य समस्याएं वाले, हाथ-पैर कमजोर वाले, अस्थि-व्यंग्य आदि बच्चे, उन सब में सीखने की प्रवृत्ति उतनी ही थी, जितनी सक्षम बच्चों में थी।
इस तरह उन्होंने पाया कि शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे, शारीरिक रूप से सक्षम बच्चों के साथ ही मुख्यधारा के विद्यालयों में पड़ें, तो वह उतनी ही सामान्य गति से सीख जाते हैं। उनके लिए अलग से विशिष्ट विद्यालय खोलने की आवश्यकता नहीं। उन्हें मुख्यधारा के विद्यालय में ही अन्य विद्यार्थियों के साथ पढ़ाया जाए तो उनके सीखने की प्रवृत्ति अधिक होती है। इस तरह उन्होंने अमर ज्योति चैरिटेबल संस्था शुरू की, जहाँ पर सामान्य और असामान्य दोनों तरह के बच्चे बढ़ते हैं।
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Answer:
Explanation:
अमर जवान चैरिटेबल संस्था शुरू करने से पहले उमा जी ने यह जानकारी जुटाई की शारीरिक रूप से अक्षम और शारीरिक रूप से सक्षम दोनों ही प्रकार के बच्चों के व्यवहार में क्या अंतर होता है। शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए किस-किस तरह की परेशानियाँ आती हैं।
इन्होंने ये जानकारी जुटाने के लिये सबसे पहले 1981 में एक कार्यशाला शुरु की। इसमें शारीरिक रूप से सक्षम और अक्षम दोनों तरह के बच्चे थे। उन्होंने दोनों तक के बच्चों के व्यवहार में बारीकी से अध्ययन किया और उन्होंने पाया कि जो बच्चे शारीरिक के रूप से अक्षम थे यानी दृष्टिबाधित, सीमित बुद्धि वाले, श्रवण बाधित, सीखने की समस्या वाले, बोली और संचार की समस्या वाले, अन्य तरह की स्वास्थ्य समस्याएं वाले, हाथ-पैर कमजोर वाले, अस्थि-व्यंग्य आदि बच्चे, उन सब में सीखने की प्रवृत्ति उतनी ही थी, जितनी सक्षम बच्चों में थी।
इस तरह उन्होंने पाया कि शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे, शारीरिक रूप से सक्षम बच्चों के साथ ही मुख्यधारा के विद्यालयों में पड़ें, तो वह उतनी ही सामान्य गति से सीख जाते हैं। उनके लिए अलग से विशिष्ट विद्यालय खोलने की आवश्यकता नहीं। उन्हें मुख्यधारा के विद्यालय में ही अन्य विद्यार्थियों के साथ पढ़ाया जाए तो उनके सीखने की प्रवृत्ति अधिक होती है। इस तरह उन्होंने अमर ज्योति चैरिटेबल संस्था शुरू की, जहाँ पर सामान्य और असामान्य दोनों तरह के बच्चे बढ़ते हैं।