अमर
श्रीकृष्ण
थ) जाल
क) इद्या ऊ
काल
सूरकार हिदी सोप्य के किव्य काल सबोधि
हर
(का भक्तिकाल
ख
मा भावनिक काल
वरगया कल
3
और काल
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कृष्णाश्रयी शाखा
कृष्णाश्रयी शाखा का सबसे अधिक प्रचार और प्रसार हुआ है। कृष्णाश्रयी शाखा में भगवान कृष्ण के सौंदर्य-पक्ष की ही प्रधानता रही। कृष्ण का चरित्र विलक्षण है। उनका ध्यान कृष्ण के मधुर रूप और उनकी लीला माधुरी पर ही केंद्रित रहा। भगवान की महिमा का गान करते हुए कहीं-कहीं प्रसंगवश उनके लोक रक्षक रूप का भी उल्लेख कर दिया है, किन्तु मुख्य विषय गोपी-कृष्ण का प्रेम है। कृष्ण-भक्ति का केन्द्र वृन्दावन था। श्री कृष्ण की लीला-भूमि होने के कारण उनके भक्तों ने भी ब्रज को अपना निवास स्थान बनाया। रसखान के भी वृन्दावन में रहने का उल्लेख मिलता है। अनेक संप्रदायों में उच्च कोटि के कवि हुए हैं। इनमें वल्लभाचार्य के पुष्टि-संप्रदाय के सूरदास जैसे महान् कवि हुए हैं।
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