अमठिन सादयांश
जिल्वा सभी को मिली है, कि उचित बोलना बहुत कम लोग
जानते है । प्रायः लोमा कड़वी बातो में दूसरे की पर्थ
निदा स्थति में वाणी की सार्थकता समझते हैं। उन
दिव्य पुरुषों की संख्या अगलियों पर ही गिनीजा
सकती हैं, जिनकी जिहवा में अम्जामय मधुरता एवं
हिमकी - सी शमिलता रहती हास्यू, लोगों की वाणी
से निराश जीवन को उत्साह मिलता नरक की यंत्रणा
में छटमटाने वाले की धैर्य और आश्वासन मिलता
है।व्याकावू का मरिचय देने में वाणी प्रथम क्योंकि
अच्य ण तो साथ रहने मट धीरे-धीट मकट होते हैं,
मट वाणी की बारिमा तत्काल प्रकट होती है, इसके
दवारा सूर्वथा अमरिचित को मी,थाई वार्तलास में ही
स्लेट ऑट सहान पान के सूत्र में बाँया जा सकता है।
दिव्य वाणी बोलने वाले के लिए संसार में चारों
और अमीर-चारीब, मरिचम-अमशिचा सबके
दबार खावात के लिए खुले रही है। उनके मान
में लोग मलक मावडे, बिछा देते हैं स्ला सम्मान
छत्र धारी सम्राट डील मर सी शायद ही कोई मा
सकताहा
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